हमें यक़ीं था हमारा कुसूर निकलेगा

मेरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा


इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा


गिरा दिया है तो साहिल पे इंतिज़ार न कर


अगर वो डूब गया है तो दूर निकलेगा


उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़


हमें यक़ीं था हमारा कुसूर निकलेगा


यक़ीं न आए तो इक बात पूछ कर देखो।


जो हँस रहा है वो ज़खूमों से चूर निकलेगा


उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़


हमें यक़ीं था हमारा कुसूर निकलेगा


यकीं न आए तो इक बात पूछ कर देखो


जो हँस रहा है वो जखमों से चूर निकलेगा


उस आस्तीन से अश्कों को पोछने वाले


उस आस्तीन से खंजर ज़रूर निकलेगा


रचना : अमीर कज़लबाश


संकलन कर्ता : फरहान इसराइली


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