मीडिया को फिर की एडवाइजरी जारी
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 10 दिन में शुक्रवार के दिन टीवी, समाचार चैनलों को दूसरी एडवाइजरी जारी कर दी। एडवाइजरी में कहा गया है कि ऐसी विषयवस्तु के प्रसारण से बचे जिसमें 'हिंसा भड़कने या राष्ट्र विरोधी प्रवृति को बल मिलने की संभावना हो।' पिछली एडवाइजरी 11 दिसम्बर को जारी की गई थी, जब नागरिकता संशोधन विधेयक राज्यसभा में पारित हुआ था, जिसके बाद देश के कई भागों में विरोध प्रदर्शन शुरु हो गए थे। पिछली एडवाइजरी के विपरीत नई एडवाइजरी में निर्देशों का कड़ाई से पालन करने के लिए कहा गया है। देश की यह पहली सरकार है जो अपने नागरिकों को सड़कों पर उतरने पर मजबूर कर रही है। देश की यह पहली सरकार है जो संविधान के खिलाफ जाकर कानून बना रही है, अपनी जनता को धार्मिक आधार पर बांटकर लड़ाना चाह रही है। नागरिकता संशोधित कानून मोदी सरकार ने संसद में बहुमत के आधार पर बना तो दिया लेकिन देश में इसके विरोध में जबर्दस्त प्रदर्शन हो रहे हैं। लखनऊ सहित देश के अन्य शहरों में दो दर्जन से ज्यादा लोग मारे गए हैं। भाजपानीत केन्द्र सरकार ने मुसलमानों के प्रति दुर्भावना रखते हुए सीएए कानून बनाया था लेकिन देश के सभी समुदायों जिसमें हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख एवं ईसाई इसका विरोध कर रहे हैं। इसके बाद एनआरसी लाने की कवायद जारी है। एनआरसी लागू करने से देश के सभी नागरिक डरे हुए हैं। असम में एनआरसी का परिणाम देखा है पूरे देश ने देखा कि असम में 19 लाख लोग देश की नागरिकता से वंचित कर दिए गए हैं। 19 लाख में से 13 लाख हिन्दू समुदाय से है। एनआरसी लागू होते ही पूरा देश अपने कागजात बनवाने के लिए नोटबंदी के समय जैसे लाइनों में लगा था उसी तरह फिर लाइनों में लग जाएगा। देश में नागरिकता संशोधित कानून पारित होने से हिन्दू, सिक्ख एवं ईसाई को तो नागरिकता आसानी से मिल जाएगी लेकिन मुसलमानों के लिए यह मुश्किल होगा। मुस्लिम पहले से ही अपने पूरे कागजात बनवाकर नहीं रखते हैं और हाथों हाथ बनवा भी नहीं सकते हैं। यही सोचकर देशभर का मुस्लिम समुदाय सड़कों पर उतरकर नागरिकता संशोधित कानून का विरोध कर रहा है। मुसलमानों के साथ देश के सेक्यूलर सोच के लोग जो सभी समुदायों से हैं, विरोध कर रहे हैं। सभी विपक्षी पार्टियां नागरिकता संशोधित कानून का विरोध कर रही हैं। जिस तरह देशभर में सरकार के लाए इस गैर संवैधानिक कानून का विरोध हो रहा है, लोग सड़कों पर उतर रहे हैं, चारों तरफ अफरा-तफरी मची हुई है। लगने लगा है सरकार डरी हुई है। यही कारण है कि देश में जो हो रहा है उसे टीवी, समाचार चैनलों पर नियंत्रण करने के लिए 10 दिन में दूसरी बार एडवाइजरी जारी करनी पड़ी। सरकार चाहती है कि लोगों के द्वारा हो रहा तीव्र विरोध समाचार चैनलों पर नहीं दिखाया जाए। वैसे सरकार की देश में ही नहीं विदेशों में भी काफी किरकिरी हो रही है। देश के लिए सही नहीं माना जा सकता है। यदि सरकार का यही रवैया रहा तो निश्चित रूप से विरोध प्रदर्शन हिंसक रूप भी ले सकते हैं। प्रदर्शनों से होने वाली जानमाल के नुकसान की जिम्मेदारी सिर्फ केन्द्र सरकार की होगी। इसलिए केन्द्र सरकार को देशहित में और अपने नागरिकों को आपस में बांटने से बाज आना चाहिए और नागरिक संशोधित कानून एवं एनआरसी को वापस लेना चाहिए।
-सम्पादक(एम. खान- रॉयल पत्रिका )