मोदी एण्ड शाह कम्पनी अगर यह सोचते हैं कि भारतीय मुसलमान प्रताड़ित होकर भारत से पाकिस्तान या और कहीं हिजरत कर जाएंगे, तो यह उनकी बहुत बड़ी गलत फहमी है
फिरोज खान
एनआरसी और फिर नागरिकता संशोधन बिल पास करके भाजपा व संघ परिवार अब खुलकर दुनिया के सामने नंगे हो गए हैं। जब से भाजपा सरकार में आई है, आए दिन कोई न कोई मुस्लिम विरोधी कदम उठा रही है। अपने मुस्लिम विरोधी कदमों को वह कभी मानवतावादी बताकर तो कभी राष्ट्रहित में बताकर अपनी जहरीली मानसिकता को छिपाए हुए थी। भाजपा में बैठे दलित समाज व मुस्लिम समाज के कुछ छुट भैये नेता भी भाजपा के मुस्लिम विरोधी कदमों का हिस्सा (समर्थन) करते नजर आते थे। लेकिन अब पहले एनआरसी और बाद में कैब (नागरिकता संशोधन बिल) से भाजपा और संघ परिवार का मुसलमानों के विरूद्ध घोर नफरत और दुश्मनी की नीति खुलकर सामने आ गई है। एनआरसी कानून के दायरे में लाखों हिन्दु समुदाय के लोग भी आ रहे थे। अकेले आसाम में 19 लाख लोग घुसपैठियों के तौर पर नामजद किए गए जो किसी भी तरीके से अपनी नागरिकता भारत में होना सिद्ध नहीं कर सके। इन 19 लाख में से 13 लाख तो हिन्दु ही थे। उनमें भी ज्यादातर सवर्ण हिन्दु है जो कि आसाम में भाजपा का वोट बैंक है। अब भाजपा के सामने अपने वोट बैंक सवर्ण हिन्दुओं को बचाने की समस्या आ खड़ी हुई है। गहन चिंतन व संघी बुद्धिजीवियों से विचार-विमर्श के बाद एनआरसी में संशोधन कर, सिटीजन अमेन्डमेन्ट बिल (सी.ए.बी) यानि नागरिकता संशोधन बिल का मसौदा तैयार किया गया इसके अनुसार मुसलमानों को छोड़कर अन्य समुदायों (हिन्दु, सिख, बौद्ध व ईसाइयों) को नागरिकता के लिए आवश्यक वैध दस्तावेज नहीं होने की सूरत में भी भारतीय नागरिकता एवं भारतीय नागरिक की समस्त सुविधाएं प्रदान की जाएंगी। जबकि भारतीय मुसलमानों को वैध दस्तावेज दिखाना जरूरी होगा। वैध दस्तावेज की प्रक्रिया इतनी कठिन है कि 10-10 दिन तक कई मील तक लम्बी कतार में खड़े रहने के बावजूद दस्तावेज तैयार नहीं हो पाएंगे। गरीब परिवार को तो खाने, पकाने के भी लाले पड़ जाएंगे, इस प्रक्रिया में लगे रहने में। असम व बंगाल में एक ही परिवार के कुछ सदस्य तो दस्तावेज जैसे तैसे बनवाकर भारतीय ही रह गए और जो नहीं बनवा सके, उनके वोटर लिस्ट में से नाम कट गए और वे राशन कार्ड व आधार कार्ड व अन्य सुविधाओं से मेहरूम कर दिए गए। अब ये भयावह स्थिति समस्त भारत में मुसलमानों के सामने नए बिल से आने वाली है। मुसलमानों का बुद्धिजीवी व समझदार तबका उस भयावह स्थिति से बचने के लिए ही प्रोटेस्ट कर रहा है। संसद से पास यह बिल पाकिस्तान निर्माता मोहम्मद अली जिन्ना के द्विराष्ट्र सिद्धांत की याद दिलाता है जिसके अनुसार हिन्दू व मुसलमान दो अलग-अलग कौम हैं और उनका अलग-अलग मुल्क होना चाहिए। मुसलमान धार्मिक, सांस्कृतिक रूप से एक अलग कौम है अतः मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्रों को मिलाकर एक पाकिस्तान नाम का अलग देश होना चाहिए जहां मुसलमान अपने रीति- रिवाजों व धर्म-संस्कृति के मुताबिक जीवित रह सकें। इस सिद्धांत के परीक्षण हेतु 1935 के अधीनियम के अन्तर्गत प्रांतों में चुनाव कराए गए। इस चुनाव में कई मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी कांग्रेस को फतेह मिली और मुस्लिम लीग को नकार दिया गया। जिन्ना की द्विराष्ट्र सिद्धांत को उस समय के कुछ ताकतवर मुस्लिम नेताओं व उलेमाओं ने भी नकार दिया। जिनमें प्रमुख मौलाना आजाद व जमीअत उल्मा हिन्द संगठन प्रमुख था। हिन्दू महासभा के वीर सावरकर जिन्ना के हिन्दू-मुस्लिम राष्ट्र विभाजन सिद्धांत के समर्थक थे। यही कारण है कि अगस्त 1947 में देश के बटवारे के समय हिन्दू फिरकापरस्त मानसिकता के लोग चाहते थे कि तमाम भारतीय मुसलमान पाकिस्तान चले जाएं और भारत सिर्फ हिन्दुओं का देश रहे। ऐसे हिन्दू मानसिकता के लोगों ने मुसलमानों को पाक भगाने के उद्देश्य से मारकाट का सहारा लिया। लाखों मुसलमान भारत में अपना घर बार छोड़कर पाकिस्तान भाग गए। लाखों दंगों में मारे भी गए और हजारों मुसलमान मुर्तद भी हो उनकी बहुत बड़ी गलत फहमी है गए। पाकिस्तान में भी हिन्दू सिखों के साथ यही सब कुछ किया गया। इस सबके बावजूद भी एक बड़ी संख्या में मुसलमान भारत के लगभग हर प्रांत में बाकी रहे। बाकी रहे मुसलमानों ने अपने आपको संभाला। अपनी तरक्की की तरफ ध्यान दिया। उन्होंने भारत में दीन की सरबुलन्दी की तरफ विशेष तौर पर ध्यान दिया। नतीजा यह हुआ कि सारे देश में लाखों मस्जिद-मदरसे स्थापित हो गए। आए दिन बड़ी संख्या में हिन्दू इस्लाम कुबूल करने लगे और यह सब देश के हिन्दुत्ववादी तत्वों को असहनीय लगने लगा। राजनीति में मुसलमानों ने कांग्रेस का दामन थामा। इससे हिन्दुत्ववादी और भी मुसलमानों से चिढ़ गए, उन्हें लगा कि मुसलमानों को उखड़े हुए पैरों को जमाने में कांग्रेस का ही रोल है। जबकि हकीकत में ऐसा नहीं था। मुसलमानों ने अपने दम खम पर अपने को देश में बनाए रखा। जो काम मारकाट से 1947 के आस-पास नहीं हो सका। अब उसी काम को संघ परिवार के कारिन्दे मोदी-शाह ने सभ्य तरीके से कानून _ बनाकर पूरा करने की कोशिश की है। लेकिन मोदी-शाह एण्ड कंपनी का दुर्भाग्य है कि अब देर हो चुकी है। भारत में आज का मुसलमान 1947 का मुसलमान नहीं है, न ही पाक व बांग्लादेश अथवा अरब देशों में रहने वाले मुसलमानों जैसा भौतिकवादी मुर्दा मुसलान है। संघ परिवार का पाला अब मुसलमान नाम की उस ज़िन्दा कौम से है जो अपने नाता दीनईमान से व इस्लाम से पक्का करने की तरफ बढ़ रही है। अब अगर मोदी व शाह समझते हैं कि भारतीय मुसलमान 1947 की तरह पीड़ित होकर पाक या कहीं और भाग जाएंगे या इस्लाम से नाता तोड़ लेंगे, तो यह उनकी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी भूल है मुसलमान लड़ेगा, मरेगा और न सिर्फ यहीं रहेगा बल्कि इस्लाम को गालिब भी इस मुल्क में करेगा। भारत के मुसलमानों ने हालात के बहुत थपेड़े झेल लिए। अब तो उसका यह कहना है कि"
बातिल से दबने वाले ऐ आसमां नहीं हम,
सौ बार कर चुका है तू इम्तिहां हमारा।