मोदीजी जनता के मन की बात भी सुनिए
मोदीजी अपने सीएए और एनआरसी के जरिए देश की जनता को नफरत की आग में धकेल दिया लेकिन जनता की आवाज कुछ और है उसे भी सुनिए कि जनता कैसा देश चाहती है।
मोदीजी जब से प्रधानमंत्री बने हैं तब से पूरे देश को मन की बात सुना रहे हैं। यह एक तरफा संवाद है। आपने कभी भी यह जानने का प्रयास नहीं किया कि आप जो मन की बात देश को सुना रहे हैं, उससे देश की जनता कितना सहमत हैं । लोकतंत्र कभी भी एक तरफा संवाद से नहीं चलता है। लोकतंत्र का मूल आधार होता है आपसी संवाद। यदि आप किसी के सामने अपनी बात रखते हैं तो आप में यह साहस भी होना चाहिए के दूसरा पक्ष क्या कहना चाहता है, उसकी भावना है, जनता क्या चाहती है। स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए न केवल जनता के मन की बात सुनी जानी चाहिए बल्कि उसको समझा भी जाना चाहिए। चुनाव लड़ने तक आप भाजपा के नेता हो सकते हैं लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद आप भाजपा के नेता नहीं रह जाते हैं बल्कि पूरे देश के प्रधानमंत्री होते हैं। आप उनके भी प्रधानमंत्री होते हैं जिन्होंने आपको वोट नहीं दिया जो आप से सहमत होते हैं। लेकिन आप अब तक सिर्फ अपने मन की बात कहते आ रहे आपने कभी भी देश की जनता के मन की बात सुनने का प्रयास नहीं किया, उसी का नतीजा है कि आज पूरे देश की जनता अपने मन की बात सुनाने के लिए सड़कों पर उतरी हुई है और अपने मन की बात आपको सुनाना चाहती है कि उसे कैसा भारत चाहिएचुनाव जीतना हर राजनैतिक दल का लक्ष्य होता है लेकिन यह चुनाव जीता जाता है जनता के विकास के मुद्दे पर। पर आप नफरत की बुनियाद पर चुनाव जीतना चाहते हैं। आप झारखंड के चुनावों में सार्वजनिक मंच से कहते हैं कि आप को कपड़ों से पता चल जाता है कि कौन साम्प्रदायिक हैं और कौन नहीं है। कौन दंगा करने वाले हैं और कौन नही है। आप जरा अपने कपड़ों पर गौर कीजिए आप जो कुर्ता पायजामा पहने हैं वह सनातन संस्कृति के वस्त्र नहीं है। सनातन संस्कृति में तो जिन वस्त्रों का वर्णन है वह धोती और कुर्ता होता है । इसलिए आज पंडित जब धार्मिक कार्यों को सम्पन्न करवाता है तो धोती धारण करता है। मंदिर का पुजारी भी पूजा के समय धोती ही धारण करता है। आप और अमित शाह जी को कुर्ता पायजामा पहनते हैं वे मुस्लिम संस्कृति की देन है तो आपके इन वस्त्रों के आधार पर आपको क्या माना जाए, यह आप ही तय कर लीजिए क्योंकि आपने ही एक समुदाय के द्वारा पहने जाने वाले वस्त्र को साम्प्रदायिकता से जोड़ दिया है। देश की जनता यही जानना चाहती है कि आपके पास ऐसी कौनसी शक्ति है जो बता देती है कि अमुक तरीके के वस्त्र पहनने वाला व्यक्ति साम्प्रदायिक होता है या दंगाई होता है। आप अपने विदेशी दौरों में जो पेन्ट कोट पहनते हैं वह भारतीय संस्कृति या सनातनी संस्कृति का हिस्सा नहीं है। बल्कि भारत को गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों का दिया हुआ लिबास है। तो इन वस्त्रों को पहनकर क्या हमें गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं। मोदी देश के इतिहास को समझिए कि यह देश कैसे बना आप जिस एनआरसी की बात कर रहे हैं उससे मिलती जुलती व्यवस्था अफ्रीका में 1906 में भारतीयों के साथ करने का प्रयास किया था जिसको परमिट सिस्टम कहा जाना था लेकिन भारतीयों ने इसे अपमान माना और इसका विरोध करने का फैसला किया और इसका विरोध करने वालों का जिन्होंने नेतृत्व किया उसमें गांधीजी और हबीब मियां थे। यहीं से सत्याग्रह की उत्पत्ति और इस आन्दोलन का सारा खर्च हबीब मियां ने ही वहन किया था और इसी सत्याग्रह आन्दोलन से बापू का उत्थान हुआ जो आगे चलकर राष्ट्रपिता बने। ऐसे में आप इस तथ्य को समझिए कि हिन्दू मुस्लिम एकता कितनी पुरानी है और कितनी मजबूत है। इस देश में मुसलमानों को कितनी मुहब्बत है, तो आप राम प्रसाद बिस्मिल एवं अशफाकउल्ला खां की दोस्ती को पढ़िए। जब अशफाकउल्ला को फांसी होने वाली थी तो उन्होंने बिस्मिल से कहा कि पंडित जी इस्लाम में पुर्नजन्म की व्यवस्था नहीं है यदि अल्लाह मुझे मौका दे तो में फिर से भारत में जन्म लेना चाहूंगा और फिर से देश के लिए कुर्बान होना चाहूंगा। इस जज्बे को समझने की जरूरत है। जब आप इसे समझ जाएंगे तो आपके समझ में आ जाएगी कि आपके द्वारा बनाए गए नागरिकता संशोधन कानून किस तरह से देश को धर्म के आधार पर बांट रहा है और क्यों देश हिन्दू समुदाय सुनिए कि जनता कैसा भी इसका सड़कों पर विरोध कर रहा है। क्योंकि उसे रामप्रसाद बिस्मिल व अशफाक उल्ला की दोस्ती वाला भारत चाहिए। मोदीजी जरा इतिहास पीछे झांककर देखिए कि जब देश के संविधान की प्रस्तावना लिखी जा रही थी तो आपकी पाठशाला के उस दौर के छात्र कामथ साहब जो संविधान सभा के सदस्य थे, उन्होंने प्रस्ताव रखा कि देश संविधान की प्रस्तावना लिखने की शुरुआत ईश्वर से की जानी चाहिए। लेकिन उस संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सहित अनेक सदस्यों ने इसका विरोध किया और कहा कि भारत एक धर्म विशेष का देश नहीं है। यह सभी धर्मों के मानने वालों का देश है इसलिए प्रस्तावना की शुरुआत ईश्वर से नहीं होनी चाहिए। इस पर संविधान सभा में बाकायदा वोटिंग हुई जिसमें संविधान के प्रस्तावना की शुरुआत (We The People of India) हम भारत के लोग से शुरु हुई। आज आप नागरिकता संशोधन विधेयक और एनआरसी के जरिए हम भारत के लोगों को धर्म के आधार पर बांटना चाहते हो। लेकिन जनता इस बटवारे को स्वीकार करने को तैयार नहीं है इसलिए वह पूरे देश में सड़कों पर हैं और आपको अपने मन की बात सुनाना चाहती है। जो देश के संविधान प्रस्तावना में लिखा है। वह हिन्दू व मुस्लिम में बटने को तैयार नहीं है। आप जो यह झूठ फैला रहे हैं कि मुसलमान देश के बटवारे का जिम्मेदार है यह झूठ है । ऐतिहासिक तथ्य यह कि द्विराष्ट्र का सिद्धांत 1937 में वीर सावरकर लेकर आए जो आपकी पाठशाला के प्राचार्य हुआ करते थे। उनकी पाठशाला के विचारों से प्रभावित होकर जिन्ना पैदा हो गया लेकिन भारत के मुसलमानों ने जिन्ना को खारिज कर दिया। उसने बापू, पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, बाबा साहब अम्बेडकर एवं मौलाना आजाद को अपना नेता माना और पाकिस्तान जाने के विकल्प को खारिज कर दिया और भारत में रहने का फैसला किया। क्योंकि उन्हें अपने देश से मोहब्बत थी। आप मुसलमानों की नागरिकता का प्रमाण पत्र मांगने से पहले इतना जरूर जान लीजिएगा कि देश के दोनों स्वतंत्रता आन्दोलनों में मुसलमानों की कितनी कुर्बानियां थी और आपकी पाठशाला से पढ़े छात्रों की और इस पाठशाला को कायम करने वाले लोगों का क्या योगदान था। जब इन्हें समझ लेंगे तो आपको स्वतः ही देश के जनता की मन की आवाज समझ में आ जाएगी कि देश की जनता कैसा भारत चाहती है। क्यों वह धर्म के आधार पर बटने को तैयार नहीं है। क्यों वह सीएए और एनआरसी का विरोध कर रही है, क्योंकि उसके मन की बात यह जो देश के संविधान की प्रस्तावना में लिखा हुआ है वह हम भारत के लोग ही रहना चाहती है। वह हिन्दू-मुस्लिम बंटने को तैयार नहीं है। इसलिए आपको अपनी बात सुनाने के लिए सड़कों पर उतरी हुई है।
-डॉ. शहाबुद्दीन खान