सीएए एवं एनआरसी नहीं आता तो पूरे देश में मोदी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन शुरु हो जाते

 





    • आर्थिक मोर्चे पर विफलता को छिपाने के लिए यह कानून सीएए एवं एनआरसी जैसे कानून लाए गए हैं -

    • यदि यह कानून नहीं लाए जाते तो पूरे भारत देश में मोदी सरकार के विरोध में युवा बेरोजगार, व्यापारी एवं किसान प्रदर्शन शुरू कर देते




एम. खान


जयपुर।


           


                     


                     नरेन्द्र मोदी नीत केन्द्र सरकार के कार्यकाल में लगातार जीडीपी की दर गिरती गई और अब यह 3.5 प्रतिशत के आसपास बताई जा रही है। देश का निर्यात घट रहा है। व्यापार एवं कामधंधा करने में मुश्किल बढ़ी है। बेरोजगार युवाओं की बाढ़ बढ़ती जा रही है। उनको योग्यता के अनुसार रोजगार नहीं मिल रहा है। महंगाई का आलम यह है कि गरीब अपनी दो जून की रोटी का इंतजाम नहीं कर पा रहा है। इसी दौर में हरियाणा, महाराष्ट्र के चुनावों ने भाजपा को तगड़ा झटका दे दिया। झारखंड विधानसभा में तो भाजपा की तगड़ी दुर्गति हुई। माना यह जा रहा है कि मोदी सरकार यदि सीएए, एनआरसी एवं एनपीआर नहीं लाती तो पूरे प्रदेश में भाजपा की मोदी सरकार के खिलाफ युवा बेरोजगारों, के लिए उठाए कड़े व्यापारियों, किसानों एवं मजदूरों का आक्रोश सड़कों पर दिखाई पड़ता। यह कानून बड़ी सोच समझकर मोदी सरकार लाई जिससे आर्थिक एवं रोजगार के मामले में बढ़ रहे जनाक्रोश को हिन्दू-मुस्लिम टकराव में बदला जा सके। लेकिन यहां भी मोदी सरकार असफल होती दिख रही है। सिवाय भाजपा शासित राज्यों के जितने भी विरोध प्रदर्शन हुए शांतिपूर्वक हुए और कोई अनहोनी नहीं हुई। कई राज्यों ने सीएए एवं एनआरसी को लागू करने से मना कर दिया। अब प्रधानमंत्री मोदी सीएए एवं कदम -गहलोत एनआरसी को पूरे देश के लिए न बताकर केवल असम के लिए बता रहे हैं। जबकि मोदी के गृहमंत्री अमित शाह एनआरसी एवं सीएए को पूरे देश में लागू करने की बात कई बार कह चुके हैं। मोदी तो यह भी कह रहे हैं कि देश में कोई डिटेंशन सेंटर नहीं है जबकि असम में और कर्नाटक में डिटेंशन सेंटर की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। प्रधानमंत्री मोदी देश के उच्च पद पर आसीन हैं फिर भी उन्होंने झूठ आसानी से बोला। जब देश को बागडोर झूठे नेताओं के हाथ में हों और अपनी जनता में बटवारा करने की साजिश की जाए तो उस देश का भविष्य क्या होने वाला है, समझा जा सकता है। अब इस देश को बचाने के लिए शिक्षाविद, समाजसेवियों, बुद्धिजीवियों एवं जनता को स्वयं आगे आना होगा नहीं तो बर्बादी तो है ही।


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