कश्मीर के हालात मानवाधिकारों का उल्लंघन हैं - अमेरिकी सांसद


वॉशिंगटन (एजेंसी)। अमेरिका की महिला सांसद डेबी डिंगेल ने कहा है कि कश्मीर के हालात मानवाधिकारों का उल्लंघन हैं। अमेरिका की महिला सांसद डेबी डिंगेल ने नवगठित केंद्र शासित क्षेत्र (जम्मू कश्मीर) में नजरबंद लोगों को छोड़ने और संचार सेवाओं पर लगी पाबंदियों को हटाने की अपील करने वाले प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा कि कश्मीर के हालत मानवाधिकारों का उल्लंघन हैं। भारतीय मूल की अमेरिकी सांसद प्रमिला जयपाल ने प्रतिनिधिसभा में इस संबंध में प्रस्ताव नंबर 745 पिछले साल दिसंबर महीने में पेश किया गया थाइसे कुल 36 लोगों का समर्थन हासिल है।


                    इनमें से दो रिपब्लिकन और 34 विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य हैं। प्रमिला जयपाल ने भारत से वहां लगाए गए संचार प्रतिबंधों को जल्द से जल्द हटाने और सभी निवासियों की धार्मिक स्वतंत्रता संरक्षित रखे जाने की अपील की थी। प्रमिला हाउस ऑफ अमेरिकी सांसद हैं। उन्होंने कहा, 'इसलिए मैंने प्रस्ताव 745 पर जब तिरंगा राष्ट्रीय हस्ताक्षर किए हैं ताकि अमेरिका विश्व को बता सके कि हम इन उल्लंघनों को होता नहीं देखेंगे।' डिंगेल मिशिगन का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह प्रस्ताव अभी आवश्यक कार्रवाई के लिए 'हाउस फॉरेन अफेयर्स कमेटी' के पास है। इस बीच सांसद ब्रैड शेरमन ने कहा कि वह भारत में अमेरिकी राजदूत केनेथ जस्टर की जम्मू कश्मीर की हालिया यात्रा पर उनकी रिपोर्ट मिलने का इंतजार कर रहे हैं।


                        शेरमन ने कहा, 'मुझे उम्मीद है कि रिपोर्ट के जरिये यह स्पष्ट होगा कि राजदूत ने क्या प्रतिबंध देखें विशेष रूप से, राजदूत हिरासत में लिए लोगों से मिल पाए या नहीं।' गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त किए जाने के बाद जस्टर समेत 15 देशों के राजनयिक मौजूदा स्थिति का मुआयना करने को श्रीनगर गए थे। इससे पहले बीते साल अक्टूबर महीने में जम्मू कश्मीर की स्थिति पर अमेरिकी संसद की विदेश मामलों की समिति ने कहा था कि संचार माध्यमों पर पाबंदी लगाने से विनाशकारी प्रभाव पड़ रहा है और समय आ गया है कि भारत इन प्रतिबंधों को हटा ले। इसी तरह सितंबर 2019 में अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने जम्मू कश्मीर में राजनीतिक नेताओं को हिरासत में लेने और संचार प्रतिबंध लगाए जाने के बाद बड़ी संख्या में लोगों को हिरासत में लेने पर चिंता व्यक्त करते हुए भारत से मानवाधिकारों का सम्मान करने का अनुरोध किया था


              सितंबर 2019 में ही कश्मीर में मानवाधिकार स्थिति को लेकर अमेरिका के दो सांसदों- प्रमिला जयपाल और जेम्प पी। मैकगवर्न ने चिंता जाहिर करते हुए विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ से अपील की थी कि वह कश्मीर में संचार माध्यमों को तत्काल बहाल करने और हिरासत में लिए गए सभी लोगों को छोड़ने के लिए भारत सरकार पर दबाव डालें। केंद्र की मोदी सरकार ने पिछले साल पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने संबंधी संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को समाप्त करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू कश्मीर तथा लद्दाख में विभाजित करने का सांसद फैसला किया था।


             फैसले के तहत जम्मू कश्मीर केंद्र शासित क्षेत्र की अपनी विधायिका होगी जबकि लद्दाख बिना विधायिका वाला केंद्रशासित क्षेत्र होगा। इस फैसले की घोषणा के कुछ घंटे पहले ही कानून और व्यवस्था बनाए रखने के हवाला देकर जम्मू कश्मीर प्रशासन ने संचार की सभी लाइनोंलैंडलाइन टेलीफोन सेवा, मोबाइल फोन सेवा और इंटरनेट सेवा को बंद कर दिया था। इससे पहले बीते साल 14 अक्टूबर को मोबाइल पोस्टपेड सेवा शुरू कर दी गई थी। इसके बाद बीते साल 27 दिसंबर को लद्दाख के कारगिल जिले में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बहाल की गई थीं। बता दें कि कश्मीर के कुछ सरकारी दफ्तरों और कारोबारी प्रतिष्ठानों को छोड़कर समूची घाटी में इंटरनेट सेवाएं पिछले साल पांच अगस्त से लगातार बंद चल रही हैं। इसके बाद पहले लैंडलाइन टेलीफोन सेवाएं धीरे-धीरे बहाल की गईं। बाद में पोस्टपेड मोबाइल सेवाएं बहाल हुईं। हालांकि मोबाइल इंटरनेट सेवाएं अब भी शुरू नहीं की गई हैं।


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