लोगों की आवाज न सुनना भी तानाशाही है।

 


लोग सड़कों पर है, हमेशा अपने मन की बात कहने वाले मोदी जी रखामोश है। लोकतंत्र में लोगों की आवाज को अनसुना करना भी तानाशाही है।



संघ की विचारधारा को थोपने की जिद से आज देश में अराजकता की स्थिति आ गई हमेशा अपने मन की बात कहने वाले मोदी जी खामोश है। लोगों की आवाज को अनसुना कर देना भी एक तरह की तानाशाही है लेकिन आज जो हालात सीएए, एनआरसी, एनपीआर को लेकर बने हुए है। इसमें देश की राजनीति की दशा बदल रही है। कई नेता बेनकाब हो रहे हैं, जनता बखौफ हो रही है, कई सारी वे चीजें सामने आ रही है जिन्हें अब तक छुपाने के प्रयास हो रहे हैं।


             अब तक लोगों की धारणा थी कि पुलिस का कर्तव्य लोगों की सुरक्षा करना होता है। लेकिन अब जनता समझ गई है कि पुलिस सत्ताधारी नेताओं के इशारे पर लोकतंत्र की हत्या भी कर सकती है। क्योंकि एएमयू जामिया, एवं जेएनयू में पुलिस जैसे काम कर रही है उससे जनता समझ गई है कि अब पुलिस अपना कर्तव्य नहीं निभाती है। जेएनयू में छात्रों को पीटने वाले गुण्डों की शिनाख्त हो गई है। उनके इस अपराध के ठोस सबूत सामने आ गए हैं। लेकिन पुलिस उन्हें अब तक गिरफ्तार करने का साहस नहीं कर सकी है क्योंकि उन गुण्डों का सम्बन्ध सत्ताधारी पार्टी के साथ है। इससे अब जनता का विश्वास पुलिस से उठ गया है। वर्तमान स्थिति में यह बात भी खुलकर सामने आ गई कि भाजपा के लोग गांधी का कितना सम्मान करते हैं और उनका देश के संविधान पर कितना भरोसा है इसको भाजपा के दो नेताओं के बयानों से समझा जा सकता है। आजतक चैनल पर टीवी डिबेट में भाजपा के प्रवक्ता अमिताभ सिन्हा से जब सीपीआई के युवा नेता कन्हैया ने पूछा कि वे यह बताए कि वे गोडसे विरोधी है या नहीं तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वे गोडसे विरोधी नहीं है। उनका इतना भर कहने से गोडसे जिन्दाबाद का नारा लगा। इससे गृहमंत्री अमित शाह का वह बयान याद आ गया जिससे उन्होंने राष्ट्रपिता को गुजरात का बनिया बताया था। वहां वह मंजर सामने आ गया जब बापू की हत्या के बाद संघ समर्थकों ने मिठाईयों बांटी थी। यानी अब सत्ता में बैठे लोग देश में गांधी की विचारधारा को खत्म करना चाहते हैं और गोडसे की विचारधारा को लागू करना चाहते है। एक और बयान का उल्लेख होना जरूरी है, भाजपा के बंगाल के अध्यक्ष ने सीएए और एनआरसी के विरोध करने वालों के बारे में कहा कि कर्नाटक और यूपी में हमारी सरकारों ने विरोध करने वालों को कुत्तो की तरह मारा । इस बयान में छिपी मानसिकता को समझना बहुत जरूरी है। इस बयान से साफ झलकता है। इनका संविधान में भरोसा नहीं है। क्योंकि संविधान सरकार का विरोध करने का अधिकार देता है। अभी भीम आर्मी के नेता चन्द्रशेखर की जमानत आवाज को अनसुना याचिका पर सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि विरोध करना नागरिकों का संवैधानिक अधिकार है। शांतिपूर्ण विरोध को आप कैसे रोक सकते हैं।


                       सुप्रीम कोर्ट ने तो यहां तक कहा कि इंटरनेट सेवा बंद करना अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है। धारा 144 लगाकर विरोध प्रदर्शन को रोकना मूल अधिकारों पर हमला है। लेकिन भाजपा का इन सब पर भरोसा नहीं है। भाजपा के बंगाल प्रदेश अध्यक्ष के बयान से साफ झलकता है कि उनका जो विरोध करेगा उसे कुत्तों की तरह मारा जाएगा यानि जो उनका विरोध करेगा वह नागरिक नहीं रह जाएगा बल्कि उसकी हैसियत कुत्ते जैसी कर दी जाएगी। साथ ही जहां उनकी सत्ता है वहां वे पुलिस का इस्तेमाल गुंडों की तरह करेंगे। लेकिन देश की जनता अब इनकी इस मानसिकता को समझ गई है। इसलिए सीएए, एनआरसी और एनपीआर के मुद्दे को इन्होंने हिन्दू-मुस्लिम मुद्दा बनाने का भरपूर प्रयास किया लेकिन देश की जनता ने इसे असफल कर दिया। आज पूरे देश में इस मुद्दे पर जहां भी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं उसमें सभी धर्मों के युवा, महिलाएं, छात्र बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। इन्होंने संघ की विचारधारा थोपने के जो प्रयास किए उसके बहुत सारे सकारात्मक पहलू भी सामने आए जैसे अब तक लगभग पूरा मीडिया मोदी मीडिया में तब्दील हो गया था लेकिन जब दबाव के कारण आज तक जैसे चैनल को जेएनयू में हुई हिंसा का स्टिंग ऑपरेशन करना पड़ा और उन गुंडों को बेनकाब करना पड़ाताकि जनता के बीच पूरी तरह से खोई हुई साख को कुछ बचाया जा सके। बाकी चैनलों के कुछ पत्रकारों में अब सवाल पूछने की हिम्मत आ रही है यानि अब कुछ पत्रकार सवाल पूछने का साहस करने लगे हैं, उन्हें अहसास होने लगा है कि देश के लोकतंत्र और संविधान पर बड़ा खतरा है। यदि वे आज खामोश रहे तो उनकी नौकरियां तो बच जाएगी लेकिन देश को लोकतंत्र एवं संविधान खत्म हो जाएगा। ऐसे में माना जा सकता है कि अब मीडिया का एक हिस्सा खौफ से बाहर आ रहा है। इस समय जो कुछ देश में हो रहा है उसका एक और सकारात्मक पहलू है।


                          अब तक मीडिया के जरिए मुस्लिम महिलाओं की छवि बनाई गई थी कि वे डरी रहती है। अनपढ़ होती है, अपने शोहर की गुलाम होती है। जिस तरह से सीएए, एनआरसी और एनपीआर के आन्दोलनों को मुस्लिम महिलाएं लीड कर रही है उसने इन सारी धारणाओं को बदल दिया है। मुस्लिम महिलाओं ने साबित कर दिया कि वे जुल्म के खिलाफ सड़कों पर संघर्ष करने का हौसला भी रखती है। उसमें नेतृत्व क्षमता भी होती है। वह पढ़ी लिखी भी है। उसे हर बात और साजिश का पता है जो देश के संविधान के खिलाफ चल रही है। जिस तरह की हिम्मत मुस्लिम महिलाओं ने दिखाई है, उससे पूरे देश में डर का माहौल खत्म हो गया है जो अब तक ईडी और सीबीआई के जरिए पूरे देश में बनाया गया था क्योंकि अब तक विपक्ष की भूमिका में नेता होते थे जिनको ईडी या सीबीआई से आसानी से डराया जाता था लेकिन अब विपक्ष की भूमिका में आम आदमी है। जिसको न ईडी का डर लगता है और न ही सीबीआई का। देश में इस डर के माहौल को खत्म करने में दिल्ली की शाहीन बाग की महिलाओं का बहुत अहम रोल है।


                उन्होंने साबित कर दिया कि न उन्हें डराया जा सकता है और न ही झुकाया जा सकता है। वहां के आन्दोलन में पूरे देश से डर को खत्म कर दिया है। इस आन्दोलन से वे चेहरे भी बेनकाब हो गए हैं जो अब तक मुसलमानों को सिर्फ वोट की तरह इस्तेमाल कर रहे थे। ऐसे में कहा जा सकता है कि चाहे विचारधारा थोपने के लिए देश को अराजकता की ओर धकेल दिया गया हो लेकिन इन सबके बीच जनता ने साबित कर दिया है कि बहुमत के बल पर देश के सवैधानिक मूल्य को खत्म करने के किसी भी प्रयास का डटकर मुकाबला किया जाएगा और देश के संविधान एवं लोकतंत्र को बचाने के लिए कैसी भी कुर्बानी देनी पड़े। जनता इसके लिए तैयार है। ऐसे में उम्मीद की किरण दिखती है कि जनता अब जाग रही है। -डॉ. शहाबुद्दीन खान


Popular posts from this blog

इस्लामिक तारीख़ के नायक : पहले खलीफा हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु

दुआ के कबूल होने का वक्त और जगह

तिजारत में बरकत है