शाहीन बाग की तर्ज पर जयपुर के अल्बर्ट हॉल पर सीएए के विरोध में भीड़ बढ़ने लगी है


 जयपुर।


        नागरिकता संशोधन कानून पर सरकार भले ही एक इंच भी पीछे हटने को तैयार न हो लेकिन इसके विरोध में प्रदर्शन करने वालों के हौसले बुलंद हैं। दिनप्रतिदिन प्रदर्शनों की संख्या में इजाफा हो रहा है। पुलिस लाठीचार्ज कर रही है, लोगों पर मुकदमे दर्ज कर जेलों में भर रही है, लेकिन इसके बावजूद बढ़ते विरोध को रोक नहीं पा रही है। आलम ये है कि दिल्ली के शाहीन बाग की तर्ज पर देश के कई अन्य इलाकों में महिलाओं ने इस कानून के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कोलकाता से लेकर असम तक और मुंबई से लेकर दिल्ली तक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.. सवा सौ करोड़ की आबादी वाले भारत में 30 से ज्यादा जगहों पर महिलाएं रोजाना रात में सड़कों पर बैठकर धरना दे रही है और सरकार से बखाफ होकर सवाल पूछ रही हैं। इन प्रदर्शनों में रोज नए इलाकों के नाम जुड़ रहे हैं। और इस विरोध प्रदर्शन में महिलाओं की भी पूरी भागीदारी देखने को मिल रही है। इस आदालन का मुख्य बात यह ह कि यह स्वतः स्फूर्त आंदोलन है।


               इसी तर्ज पर जयपुर का अल्बर्ट हाल भी राजस्थान का शाहीन बाग बनता जा रहा है इसका ना तो कोई एक नेता नता है न कोई एक पार्टी या संघठन।


                               2 जनवरी से शुरू हुआ ये प्रोटेस्ट लगातार बढ़ता जा रहा है कायक्रम स्थल विाभन्न प्रकार के पोस्टेरो और बेनरों से पटे मिलेंगे, जहा शाम ढलत हा जयपुर क युवा, वकाल, महिलाए फैज , हबीब  जालिब से  लकर आजादी के तराने गाती नज़र आता है। देर  शाम तक चलने वाले सास्कृतिक कार्यक्रम मे क्रांतिकारी कविताएं सर्द शाम में भी गर्माहट का एहसास देता है। रोजाना 400 से 500 लोग यहाँ जमा हो रहे हैं। किसी से कम नहीं: यह आंदोलन महिलाओं को लेकर कई तरह की भ्रांतियां तोड़ रहा है। जयपुर की महिलाओं ने इस आदोलन के माध्यम से बता दिया है कि हम किसा se कम नही है , जब सकट के बादल छाएंगे तो हम उस घनघोर अंधेरे से मुकाबला करन सार बंधनों को तोड़कर सामने आएंगे।


               प्रोटेस्ट में महिलाएं शाम होते ही अपने बच्चो के साथ बड़ी गरम जोशी से वहाँ पहुँचकर अपना जज़्बा दिखाती हैं। यहा आए लोगों से बात करने पर वे I बताते हैं की सरकार का मकसद लोगों को तबाह करना है। जहां देश में लोगों को दो जून की रोटी मिल जाए यही काफी है, वहां पुश्तों के जमा  कागजात की रखवाली किसके लिए संभव है। लोगों को नोटबंटी की तरह लादन संभव है। लोगों को नोटबंदी की तरह लाइन में लगाया जाएगा और उसका हासिल कछ नहीं होगा। मोदी जी लोगों से जो वादा किए थे, उसे नहीं पूरा कर पाए हैं, तो उससे ध्यान भटकाने के लिए इस तरह का काला कानून ले आएं। हम इसकी मुखालफत करेंगे।


                यहाँ पहंचे एडवोकेट साजिद खान ने बताया की शाम होते दूर दराज से सभी धर्मों के यवा एव अलग अलग संगठनो के लोग यहाँ जमा हो जाते हैं। इसमे भीम आर्मी. वामसेफ, जमाते इस्लामी, AIRSO आदि संगठन के यवा भी शाम होते ही पहंच जाते हैं। इस दौरान इनका जोश और दोगुना हो जाता है। यहाँ समहों में लोग या तो हबीब जालिब का लिखा आजादी सॉन्ग गा रहे होते हैं तो कहीं 'मोदी तेरी तानाशाही नहीं चलेगी-नहीं चलेगी' जैसे नारे गंजते रहते हैं। लोग यहाँ मोमबत्तियाँ भी जलाते हैं कैसे हो रहा है इस परे विरोध प्रदर्शन का प्रबंधन? : वॉलेंटियर टीम के सदस्य कहते हैं कि सभी लोगों के आपसी तालमेल के साथ ये प्रदर्शन आगे बढ़ रहा है। जिसे मंच से अपनी बात रखना है, वो रखता है। बाकी लोगों को जहां जगह मिलती है, वहां वे पोस्टर-बैनर, गाना-बजाना आदि के जरिए विरोध प्रदर्शन करते हैं। वहीं प्रदर्शनकारी बात करने पर बताते हैं की हमें लगता है ऑपरेशन क्लीन गवर्नमेंट बहुत ज्यादा कंफ्यूज है। सरकार से ज्यादा हमें संविधान की समझ है। तभी हम एक ही चीज की डिमांड कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि सरकार ट्रांसपेरेंसी लाए। उन्होंने कहा कहा कि जब सरकार कानून लेकर आई है तो उसे क्लियर भी करे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता से इस मामले पर खलकर बात करें। उन्होंने कहा कि सरकार बुनियादी सवालों को छोड़कर देश को बांटने का एजेंडा बना रही है। नागरिकता संशोधन कानन के खिलाफ अल्बर्ट हाल में प्रदर्शन कर रहे एक छात्र ने कहा कि सरकार ने देश के सारे मुद्दे छुपा दिए हैं। भखमरी, बेरोजागारी, अर्थव्यवस्था के सवालों पर पर्दा डालने के लिए सरकार यह कानून लेकर आई और युवाओं को प्रोटेस्ट में लगा दिया। जिससे वो इसी लडाई में उलझे रहें। उन्होंने कहा कि हम सबने संविधान की शपथ ली है, जब तक यह कानून वापस नहीं होगा हम इसी तरह शांतिपर्ण विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे।


            अल्बर्ट हाल पहुंचे जाट समाज के नेता धर्मेंद्र आंचरा ने बताया की इस महे के जरिये केंद्र सरकार केवल हिन्दू मुस्लिम करना चाहती है। जबकि सरकार का असली टार्गेट इसके जरिये एससी, एसटी व ओबीसी हैं जिन पर एनआरसी का सबसे ज़्यादा असर पडेगा। क्यंकी मस्लिम समाज के लोगों ने तो कहीं न कहीं अपने दस्तावेज सरकार की मंशा को देखते हुए तैयार कर लिए होंगे या लेकिन बाकी हिन्दू जो पिछड़े समाज से आते हैं उन्हे इससे बहुत परेशानी होने वाली हैं। ये कानून देश की मूलभावना के खिलाफ है।


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