चलो कि हम भी ज़माने में के साथ चलते हैं
चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हैं
नहीं बदलता ज़माना तो हम बदलते हैं
किसी को कद्र नहीं है हमारी क़द्रों की
चलो कि आज ये क़दें सभी बदलते हैं
बुला रही हैं हमें तल्खयाँ हक़ीक़त की
खयाल-ओ-ख़्वाब की दुनिया से अब निकलते हैं ।
बुझी है आग कभी पेट की उसूलों से
ये उन से पूछिए जो गर्दिशों में पलते हैं ।
उन्हें न तोलिये तहज़ीब के तराजू में ।
घरों में उन के न चूल्हे न दीप जलते हैं ।
ज़रा सी आस भी ताबीर की नहीं जिन को !
दिलों में ख़्वाब वो क्या सोच कर मचलते हैं
हमें न रास ज़माने की महफ़िलें आई
चलो कि छोड़ के अब इस जहाँ को चलते हैं
मिज़ाज तेरे ग़मों का 'सदा निराला है ।
कभी ग़ज़ल तो कभी गीत बन के ढलते हैं
रचना - सदा अंबालवी .
संकलन कर्ता - फरहान इसराइली