कोरोना से बचने के लिए लॉकडाउन जरूरी, सरकार का सराहनीय काम




  • लेकिन ऐसा नहीं हो कि कोरोना से ज्यादा जान लॉकडाउन से चली जाएं 

  • मजदूर, गरीबों को खाने-पीने एवं दवाईयों का इंतजाम करे सरकार

  • भिखारी जो भीख मांगकर जीवन यापन करते थे या मंदिर, मस्जिद एवं होटल के सामने भोजन का इंतजार करते थे अब उनके बारे में भी सोचना होगा सरकार को

  • व्यापारी, दुकानदार एवं अन्य छोटे कारोबारी अपना धंधा बंद करके बैठे हैं, आमदनी हो नहीं रही है लेकिन कर्ज की किस्त एवं एडवांस दिए चैकों का भुगतान कैसे होगा?

  • बिजली-पानी के बिल कैसे भरे जाएंगे इस आर्थिक तंगी के माहौल में


एम. खान जयपुर ।


                     केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने 22 मार्च को जनता कयूं का आह्वान किया और जनता ने पूरा समर्थन देते हुए सुबह से शाम तक घर में रहकर इसे सफल बना दिया। सरकार ने अब पूरे देश में लॉकडाउन 21 मार्च तक बढ़ा दिया है। अब 31 मार्च तक बस, ट्रेन एवं अन्य यातायात के साधन सड़कों पर नहीं चल सकेंगे। व्यापारिक प्रतिष्ठान, कारखाने, बाजार, होटल, रेस्तरां भी पूरी तरह बंद रहेंगे। कोरोना वायरस को एक से दूसरी जगह फैलने से रोकने के लिए और लोगों की जान की सुरक्षा के लिए सरकार ने यह कदम सख्ती से उठाया है।


            कोरोना वायरस छूत से फैलने वाली बीमारी है। कोरोना से ग्रसित व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से मिलता है तो उसे भी यह बीमारी फैलने की प्रबल आशंका रहती है। कोरोना वायरस का वैज्ञानिक अभी तक कोई कारगार इलाज नहीं ईजाद कर पाएं हैं। इसलिए इस कोरोना वायरस को फैलने से रोकना ही बचाव का सबसे अच्छा रास्ता है।


कोरोना वायरस की आशंका होने पर स्वास्थ्य विभाग की गाइडलाइन के अनुसार तुरन्त हैल्पलाइन पर सूचना देनी चाहिए या सरकार द्वारा स्थापित क्वारेंटाइन सेंटरों पर जांच करवानी चाहिए। सरकार ने लॉकडाउन तो कर दिया, जो जरूरी भी है लेकिन सरकार को यह भी सोचना चाहिए कि लॉकडाउन केहानिकारक प्रभाव से कहीं कोरोना से ज्यादा जानें नहीं चली जाए।


                       जब यातायात, ट्रांसपोर्ट को पूरी तरह से रोक दिया जाएगा तो खाने-पीने की रोजमर्रा की वस्तुएं या तो महंगी हो जाएंगी या इनकी बहुत कमी हो जाएगी। अभी भी बाजार में यह स्थिति है कि मुंह पर लगाने वाला मास्क 50-100 रुपए में मिल रहा है। सब्जी, दालों एवं खाद्य तेलों के भाव आसमान छू रहे हैं। मजदूर-गरीब के लिए पेट भरना मुश्किल हो रहा है।


     जो मजदूर और गरीब रोजाना कमाकर खाते थे वह अब भूखा रहने पर विवश हो सकते हैं। यह निम्न वर्ग बीमार होने पर दवाइयां तक नहीं खरीद सकता है। ऐसे लोगों की तादाद काफी बड़ी संख्या में देश में मौजूद है। कहीं ऐसा न हो कि सरकार की सख्ती के चलते गरीब, मजदूर या अन्य बीमारों की जान कोरोना से मरने वालों से ज्यादा नहीं चली जाए। कोरोना से बचाव में किए गए लॉकडाउन के कारण मंदिर, दरगाह, होटल एवं रेस्टोरेंट सब बंद हो गई है।


                   धार्मिक यात्रा अब नहीं निकाली जा रही है। जो भिखारी धार्मिक स्थानों पर, होटल एवं दरगाह के सामने बैठकर भोजन मिलने का भरोसा रहता था अब वहां भक्तों एवं अकीदत मंदों की आवाजाही रुकने से भिखारियों के भूखे मरने की नौबत पैदा हो गई है। अब तो भिखारी भीख मांगकर भी अपना पेट नहीं भर सकते हैं। छोटे व्यापारी, दुकानदार एवं अन्य छोटे कारोबारी अपना धंधा बंद करके बैठे हैं। आमदनी नहीं होने के कारण पेट भरना मुश्किल हो रहा है। कर्ज की किश्त एवं एडवांस दिए गए चैकों का भुगतान अब कैसे होगा जबकि बैंकों में दिए गए चैकों की क्लीयरिंग जारी है। सरकार एवं बैंक की अभी तक ऐसी कोई घोषणा नहीं हुई है कि बैंकों से अब किश्त एवं चैकों की क्लीयरिंग रोकी जाएंगी। आर्थिक तंगी से गुजर रहा गरीब, मजदूर, छोटे कारोबारी, दुकानदार परेशान दिखाई दे रहे हैं कि अब बिजली-पानी का बिल कैसे समय पर भर पाएंगे।


               जबकि केन्द्र एवं राज्य सरकार ने एक-दो महीनों का रोजमर्रा का खर्चा लोगों को देने की अभी तक घोषणा नहीं की है। सरकार की कोरोना को रोकने की योजना जब ही कारगार हो पाएंगी जब सरकार अपने स्तर पर जनता को फ्री मास्क, दवाइयां, खाने-पीने की वस्तुएं एवं बिजली पानी की छूट दे पाएंगी।


       यदि ऐसा नहीं कर पाई तो सरकार जनता के सामने कुछ दिन बाद ही बेबस नजर आएंगी। इसलिए सरकार अगर ईमानदारी से कोरोना वायरस की देश में रोकथाम चाहती है तो भामाशाहों एवं बड़े कारोबारियों को साथ लेकर आम जनता को दैनिक जरूरत की वस्तुएं उपलब्ध करवाएं।


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