हागिया सोफिया 86 बाद फिर बनी मस्जिद, तुर्की के राष्ट्रपति एरदुगान का ऐतिहासिक आदेश
तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैय्यब एरदुगान ने इस्तांबुल के ऐतिहासिक हागिया सोफ़िया म्यूजियम को दोबारा मस्जिद में बदलने के आदेश दे दिए हैं। इससे पहले शुक्रवार को ही तुर्की की एक अदालत ने हागिया सोफ़िया म्यूजियम को मस्जिद में बदलने का रास्ता साफ़ कर दिया था। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि हागिया सोफ़िया अब म्यूजियम नहीं रहेगा और 1934 के कैबिनेट के फैसले को रद्द कर दिया।
1500 साल पुरानी यूनेस्को की ये विश्व विरासत मूल रूप से मस्जिद बनने से पहले चर्च था और 1930 के दशक में म्यूजियम बना दिया गया था। तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैय्यब एरदुगान ने पिछले साल चुनाव में इसे मस्जिद बनाने का वादा किया था। डेढ़ हज़ार साल पुराने चर्च को पहले मस्जिद, फिर म्यूजियम बनाया गया, अब फिर मस्जिद बनाने का फैसला किया गया हैतुर्की का हागिया सोफ़िया दुनिया के सबसे बड़े चर्चों में से एक रहा है। इसे छठी सदी में बाइजेंटाइन सम्राट जस्टिनियन के हुक्म से बनाया गया था अब इस इसे दोबारा मस्जिद में तब्दील कर दिया गया है। यह संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक मामलों की संस्था यनेस्को के विश्व धरोहरों की सूची में आता है।
जब उस्मानिया सल्तनत ने 1453 में कुस्तुनतुनिया (जिसे बाद में इस्तांबुल का नाम दिया गया) शहर पर कब्जा किया तो इस चर्च को मस्जिद बना दिया गया थाइस्तांबुल में बने ग्रीक शैली के इस चर्च को स्थापत्य कला का अनूठा नमूना माना जाता है जिसने दुनिया भर में बड़ी इमारतों के डिजाइन पर अपनी छाप छोड़ी है। पहले विश्व युद्ध में तुर्की की हार और फिर वहां उस्मानिया सल्तनत के खात्मे के बाद मुस्तफा कमाल पाशा का शासन आया। उन्हीं के शासन में 1934 में इस मस्जिद (हागिया सोफ़िया) को म्यूजियम बनाने का फैसला किया गया। आधुनिका काल में तुर्की के इस्लामवादी राजनीतिक दल इसे मस्जिद बनाने की माँग लंबे समय से करते रहे हैं जबकि धर्मनिरपेक्ष पार्टियाँ पुराने चर्च को मस्जिद बनाने का विरोध करती रही हैं।
इस मामले पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ भी आई हैं जो धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष आधार पर बँटी हुई हैं। ग्रीस ने इस फैसले का विरोध किया है और कहा है कि यह चर्च ऑर्थोडॉक्स ईसाइयत को मानने वाले लाखों लाख लोगों की आस्था का केंद्र है। ग्रीस की सांस्कृतिक मामलों की मंत्री ने इसे धार्मिक भावनाएँ भड़काकर राजनीतिक लाभ लेने की राजनीति' करार दिया है। यूनेस्को के उप-प्रमुख ने ग्रीक अखबार को दिए गए एक इंटरव्यू में कहा है कि इस चर्च के भविष्य का फैसला एक बड़े स्तर पर होना चाहिए जिसमें अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की बात भी सुनी जानी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र के इस प्रतिनिधि का कहना है कि तुर्की को इस बारे में एक पत्र लिखा गया था लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दियाअमरीकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने कहा है कि इस इमारत की स्थिति में बदलाव ठीक नहीं होगा क्योंकि यह अलग-अलग धार्मिक आस्थाओं के बीच एक पुल का काम करता रहा है। क्या है इतिहास?
गुम्बदों वाली ऐतिहासिक इमारत इस्तांबूल में बॉस्फोरस नदी के पश्चिमी किनारे पर है, बॉस्फोरस वह नदी है जो एशिया और यूरोप की सीमा तय करती है, इस नदी के पूर्व की तरफ़ एशिया और पश्चिम की ओर यूरोप है। सम्राट जस्टिनियन ने सन 532 में एक भव्य चर्च के निर्माण का आदेश दिया था, उन दिनों इस्तांबूल को कॉन्सटेनटिनोपोल या कुस्तुनतुनिया के नाम से जाना जाता था, यह बाइजेन्टाइन साम्राज्य की राजधानी थी जिसे पूरब का रोमन साम्राज्य भी कहा जाता था। इस शानदार इमारत को बनाने के लिए दूर-दूर से निर्माण सामग्री और इंजीनियर लगाए गए थे। यह तुर्की के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। यह चर्च पाँच साल में बनकर 537 में पूरा हुआ, यह ऑर्थोडॉक्स इसाइयत को मानने वालों का अहम केंद्र तो बन ही गया, बाइजेन्टाइन साम्राज्य की ताकत का भी प्रतीक बन गया, राज्यभिषेक जैसे अहम समारोह इसी चर्च में होते रहे।
हागिया सोफ़िया जिसका मतलब है 'पवित्र विवेक', यह इमारत करीब 900 साल तक ईस्टर्न ऑर्थोडॉक्स चर्च का मुख्यालय रही। लेकिन इसे लेकर विवाद सिर्फ मुसलमानों और ईसाइयों में ही नहीं है, 13वीं सदी में इसे यूरोपीय ईसाई हमलावरों ने बुरी तरह तबाह करके कुछ समय के लिए कैथोलिक चर्च बना दिया था। 1453 में इस्लाम को मानने वाले ऑटोमन साम्राज्य के सुल्तान मेहमूद द्वितीय ने कुस्तुनतुनिया पर कब्जा कर लिया, उसका नाम बदलकर इस्तांबूल कर दिया और इस तरह बाइजेन्टाइन साम्राज्य का खात्मा हमेशा के लिए हो गया। सुल्तान मेहमूद ने आदेश दिया कि । हागिया सोफ़िया की मरम्मत की जाए और उसे एक मस्जिद में तब्दील कर दिया जाए। इसमें पहले जुमे की नमाज़ में सुल्तान खुद शामिल हुए। ऑटोमन साम्राज्य को सल्तनत-ए-उस्मानिया भी कहा जाता है।
17वीं सदी में बनी तुर्की की मशहूर नीली मस्जिद सहित दुनिया की कई मशहूर इमारतों के डिजाइन की प्रेरणा हागिया सोफ़िया को ही बताया जाता है। पहले विश्व युद्ध में ऑटोमन साम्राज्य को हार का सामना करना पड़ा, साम्राज्य को विजेताओं ने कई टुकड़ों में बाँट दिया। मौजूदा तुर्की उसी ध्वस्त ऑटोमन साम्राज्य की नींव पर खड़ा है। आधुनिक तुर्की के निर्माता कहे जाने वाले मुस्तफा कमाल पाशा ने देश को धर्मनिरपेक्ष घोषित किया और इसी सिलसिले में हागिया सोफिया को मस्जिद से म्यूजियम में बदल दिया। 1935 में इसे आम जनता के लिए खोल दिया गया तब से यह दुनिया के प्रमख पर्यटन स्थलों में एक रहा है। करीब डेढ़ हजार साल के इतिहास की वजह से तुर्की ही नहीं, उसके बाहर के लोगों के लिए भी बहुत अहमियत रखता है, खास तौर पर ग्रीस के ईसाइयों और दुनिया भर के मुसलमानो के लिए।
तुर्की में 1934 बने कानून के खिलाफ लगातार प्रदर्शन होते रहे हैं जिसके तहत हागिया सोफ़िया में नमाज़ पढने या किसी अन्य धार्मिक आयोजन पर पाबंदी है। राष्ट्रपति एरगान इन इस्लामी भावनाओं का समर्थन करते रहे हैं और हागिया सोफिया को म्यजियम बनाने के फैसले को ऐतिहासिक गलती बताते रहे हैं, वे लगातार कोशिशें करते रहे हैं कि इसे दोबारा मस्जिद बना दिया जाए।