"इंसान का दिल सही तो सब सही"
अल्लाह के रसूल व हबीब नबी- ए-करीम सल्लाहोअलैह वसल्लम की हर एक हदीस बहुत कीमती और इंसानों के लिए अंधेरे में रोशनी का काम अंजाम देती है। ख़ास तौर पर मुसलमानों के लिए तो आबे हयात की हैसियत रखती है जिससे ज़िन्दगी की हक़ीक़तें जुड़ी हुई हैं लेकिन कुछ हदीसें बहुत अहमियत रखती हैं। ख़ासतौर पर तीन हदीसें जिनके बारे में आलिमे दीन फरमाते हैं कि इस्लाम की तमाम तालीमात (शिक्षाएं) इनमें शामिल हैं तर्जुमा “अल्लाह के प्यारे हबीब ने फ़रमाया सुनो- इंसानी जिस्म में एक गोश्त (मांस) का लोथड़ा है अगर वो दुरुस्त (ठीक) हो तो सारा जिस्म (शरीर) दुरुस्त रहता है और अगर वो ख़राब हो गया तो सारा जिस्म ख़राब हो जाएगा।" (बुख़ारी-मुसलिम) दूसरी हदीस यह है कि “यानि आमाल की कुबूलियात का दोरामदार इख्लास नीयत पर है" तीसरा हदीस यूं है यानि मोमिन के इस्लाम के हुस्न की खूबी यह है कि वो बेकार और फुजूल बातों से और बेकार कामों से बचाए रखे, यह तीनों हदीसें अपने अन्दर जामियत (जमा) रखती हैं। इनमें पहली हदीस यह है कि इसके बारे में बात करें जिसमें रसूल अल्लाह ने दिल की इस्लाह की अहमियत बयान फ़रमाई है। इंसान के जिस्म में दिल अगर छोटा सा गोश्त का लोथड़ा (टुकड़ा) लेकिन पूरे जिस्म (शरीर) का राजा है जिसमें सुधार व इस्लाह हो जब बादशाह राजा सही होगा तो सारी रियाया (प्रजा) भी सही होगी। दिल के ठीक होने का मतलब यह कि दिल ईमान के नूर से चमकदार बन जाए इसमें ईमान की रोशनी से हराम व हलाल की तमीज अल्लाह का उस पर ख़ौफ पैदा हो जाए।
रसूले करीम की का दिल सही तो मोहब्बत पैदा हो जाए तो समझ लिया जाए कि दिल की इस्लाह हो गई और जिस्म के सभी हिस्से सही काम करेंगे और एक अच्छा निज़ाम (व्यवस्था) बन जाएगा। लेकिन जब दिल ख़राब होगा तो कुफ्र-शिर्क के अंधेरों तक लड़ाई झगड़े की ख़राबियां पैदा हो जाएंगी। और जिस्म के हर हिस्से ग़लत काम करने लग जाएंगे। इसलिए यह ज़रूरी है कि अपने दिन की निगरानी (देखभाल) की जाए और ख्वाहिशातें दुनिया में नहीं लगे रहें और अपने आपको बुराई से रोके रहें। एक आलिम ने दिल की इस्लाह (सुधार) के बारे में लिखा कि यह एक बड़ा काम है कि दिल की इस्लाह और देखभाल हो वर्ना यह कभी भी बदल सकता है और इसके बदलने से सच से झूठ, बुराई से भलाई की तरफ़ रुख बदल सकता है और ईमान में खराबी पैदा हो जाती है। हज़रत उम्मे सलमा रजि. रिवायत फ़रमाती है कि रसूले करीम सल्ल. अक्सर दुआ मांगा करते थे कि “ऐ अल्लाह हमारे दिलों को तेरे दीने हक़ पर हमेशा साबित क़दम रख।'' (बुख़ारी) कुराने पाक में अल्लाह तआला ने हज़रत इब्राहीम के बयान में एक जगह इरशाद फ़रमाया कि तर्जुमा “ऐ अल्लाह मुझे उस दिन रुसवा न फरमाना जिस दिन सारे इंसान उठाए जाएंगे जिस दिन न माल नफ़ा देंगे, न औलाद काम आएगी, हां वो निजात (छुटकारा) पा जाएगा जो अपना दिल सलामत लेकर आएगा, यह बात बहुत अहम बात है कि जिस इंसान का क़ल्ब (दिल) 'क़ल्बे सलीम' होगा वो निजात पाएगा, सलामत व पाक दिल क्या है यानि हर क़िस्म की बुराई से पाक दिल।" कुराने करीम में है अल्लाह पाक ने इंसान के नफ़्स को और माल को जन्नत के बदले खरीद लिया है। अब सब सही" नफ़्स की कीमत जन्नत लगा दी लेकिन दिल की कीमत अल्लाह का दीदार है इसलिए जो इंसान अपने दिल को अल्लाह के हवाले कर देगा अल्लाह क़यामत के दिन उसको अपना दीदार अता फ़रमाएंगे।
हदीसे पाक में है क़यामत के दिन कुछ लोग होंगे जो खड़े होंगे अल्लाह तआला की तरफ़ देखेंगे और देखकर मुस्कुराएंगे तो अल्लाह पाक उनकी तरफ़ देखकर मुस्कुराएंगे तो अल्लाह पाक उनकी तरफ़ देखकर मुस्कुराएंगे यह कैसे खुशनसीब लोग होंगे कि जो क़यामत के दिन अच्छे हाल में खड़े होंगे। अल्लाह पाक ने जन्नत को बनाया तो उसकी कुंजी (चाबी) रिज़वान के हाथ में दे दी और जहन्नुम बनाया तो उसकी कुंजी अल्लाह ने मालिके जहन्नुम के दारोगा को दे दी और अल्लाह ने बैतुल्लाह को अपना घर बनाया और उसकी कुंजी बनी शैबा नामी खानदान को दे दी कि क़यामत तक के लिए उनके पास ही रहेगी। इस तरह इंसान का दिल बनाया मगर उसकी कुंजी अपने इस्ते कुदरत में रख दी वहीं दिलों का फेरने वाला है वो जिसे चाहता है उलटफेर कर देता है।
अगर हमारे दिल का ताला खुल सकता है तो अल्लाह तआला के हुजूर दुआएं मांगें कि अल्लाह हमारे दिल का ताला खैर (भलाई) के लिए खोल दे। आइए अब एक मौसमे बहार आ गया है जिसमें दिल की इस्लाह के साथ बदन की सफाई भी हो जाती है, मौसमे बहार रमज़ानुल मुबारक है जिसमें हर तरफ़ भलाई रहमत मगफिरत की बारिशें बरसती हैं। हम इस माहे मुबारक में ज्यादा से ज्यादा नेकियां कमाएं और अच्छी ज़िन्दगी, अच्छा समाज और अच्छा मुल्क बनाने में मददगार साबित हों।