पाक और हलाल कमाई आमाल की इस्लाह


                           आमाल हलाल और पाक खुदा की बड़ी नेमत है नेकियों के जज्बे को बढ़ाने का जरिया है, गुनाहों और अल्लाह की नाफ़रमानी से बचने का एक बेहतरीन नुस्ख़ा है। हलाल और पाकीज़ा माल कमाकर खाने से दिन में नूरानियत पैदा होती है, रिज्क और उम्र में बरकत नसीब होती हैअल्लाह की मोहब्बत व इज्जत पैदा होती है, इसी वजह से हलाल और पाक माल कमाना और उसके लिए मेहनत व दौड़ धूप करना इस्लाम में अच्छा अमल बताया गया है। कुरान व सुन्नत में अधिकतर (ज्यादातर) मकामात पर इसके फ़जाइल बयान किए गए हैं। कुराने पाक में अल्लाह ने रसूलों को ख़िताब करते हुए फ़रमाया है- ऐ रसूलों तुम उम्दा और पाकीज़ा माल खाओ और आमालो साहिला (अच्छे आमाल) करो। इस आयते मुबारका में अल्लाह ने रसूलों के ज़रिए पूरी दुनिया के इंसानों को हलाल और पाक माल खाने का हुक्म दिया है। हलाल और पाक रिज्क खाने को आमाले सालेहा से पहले बयान किया है इससे शरीयत में हलाल माल की अहमियत (महत्व) का पता चलता है। हलाल माल कमाने के बाद ही आमाले सालेहा की तरफ इशारा करना मकसद हैहलाल माल की ख़ासियत (विशेषता) है कि वो इंसान को ..फ र म । ब र दारी (आज्ञाकारी) और नेकियों की तरफ ले जाता है, उसके लिए तैयार किया करता है। इसांन के दिल में मोहब्बते खुदा मोहब्बते रसूल और तसलीम रजा (रब की मर्जी) का चराग़ रोशन हो जाता है। गुनाह और उसकी बुराइयों को दूर रखने में मददगार साबित होता है। गुनाह से पाक रखता है इंसान को सुरक्षा (हिफाज़त) देता है। रसूले अकरम का इरशाद है कि "हलाल माल तलब करना दूसरे दूर्जे का फर्ज है, जिस आदमी ने भी हलाल माल कमाया और अपने खाने और पीने में इस्तेमाल किया या अल्लाह की मखलूक़ में से किसी पर खर्च किया तो यह उसके लिए सदक़ा होगा।' हज़रत रकब मिसरी रसूले अकरम से नक़ल करते हैं कि “ऐसे शख्स (व्यक्ति) के लिए खुशखबरी है जिसकी क़माई हलाल और पाकीज़ा है।' एक रिवायत में रसूले करीम ने फ़रमाया “जो शख्स इस्तग़ना (माफी) और बेनियाजी के साथ दुनिया में हलाल तरीके से कमा रहा है अल्लाह तआला उसको शहीदों का अजर अता करते हैं।' ये और इस तरह की बहुत सी रियावतें जिनमें हलाल व पाक माल कमाने और उसके दौड़ धूप करने की फ़ज़ीलत बयान की गई है। हलाल और पाकीज़ा रिज्क की तलाश में ज़िल्लत बरदाश्त करना अल्लाह को बहुत पसंद है।


                        हलाल और पाक ग़िज़ा (खाना) खाने और उसके हासिल करने के लिए मेहनत करने को जहां कुरान व सुन्नत में तरग़ीब (प्रेरणा) आई है। वही हलाल रिज्क (माल) खाने के बहुत से दीनी व रुहानी फ़ायदे भी है। दुआ की कुबूलियतः हलाल और पाक रिज्क कमाने और खाने का एक बड़ा फायदा (लाभ) ये होता है कि दुआएं कुबूल होती है और बंदे की मुरादें अल्लाह पूरी करते हैं। रिवायतों में आता है कि "रसूले करीम से सअद बिन अबि विकास ने दरख्वास्त (प्रार्थना) की, कि ऐ अल्लाह के रसूल आप मेरे लिए मुस्तजाबुददावात (दुआ कुबूल होने) की दुआ कर दीजिए,' आप रसूले अकरम ने फरमाया "हलाल और पाकीज़ा गिज़ा इस्तेमाल करो तुम मुस्तजाबुददावात बन जाओगे।' हज़रत याहया बिन मआज़ फरमाते हैं कि “अल्लाह की इताअत (आज्ञाकारी) व फ़रमाबरदारी अल्लाह के ख़ज़ानों में से एक ख़ज़ाना है और उन ख़ज़ानों की कुंजी के दंदाने (दांते) हैं।" इसलिए जैसे कोई ताला खोलने के लिए चाबी में दंदाने (दांते) की बड़ी अहमियत (महत्व) होती है, चाबी के बगैर ताला नहीं खोला जा सकताइसी तरह अल्लाह के यहां दुआ भी तब ही कुबूल होगी जब हलाल और पाक रिज्क का इंतिजाम हो हराम चीज़ों से बचा जाए और हराम से बचने की हमारी आदत हो जाए। वर्ना अल्लाह से दुआएं मांगना फुजूल (बेकार) है। यही वजह है कि रसूले करीम ने इरशाद फरमाया कि बहुत से बंदे जो बदहाल (बुरे हाल) और परागंदा बाल (बिखरे बाल) होते हैं। अल्लाह से मांगने के लिए अपने हाथ आसमान की तरफ बुलंद करते हैं और कहते हैं, कि “ऐ मेरे रब, ऐ मेरे रब जबकि उसकी ग़िज़ा हराम है उसका कपड़ा हराम आमदनी (आय) से तैयार हुआ है, उसके जिस्म की परवरिश हराम माल से हुई है तो कैसे उसकी दुआ कुबूल की जाएगी।” (कन्जुल आमाल) हलाल रिज्क से खशीयते इलाही, अल्लाह का खौफ व डर पैदा होता है। अल्लाह की मोहब्बत पैदा होती है, दिल में उसका नूर चमकता है, बुजुर्गों, सूफियों की सी सिफत (विशेषता) उसके दिल में पैदा होती है।


                हर बुराई से अल्लाह के करम से वो बचता जाता हैगुनाहों से बचाव, माफ़ी की चाहत और जन्नत की ज़मानत उसको नसीब होती है साथ ही अच्छे इस्लाह और नेक आमाल की तौफीक़ में इज़ाफ़ा होता जाता है। जो शख्स हराम माल और नापाक ग़िज़ा का इस्तेमाल करता है और ऐसे माल से परहेज़ नहीं करता है तो उससे न चाहते हुए भी गुनाह होते जाते हैं। नेक अमल की तौफीक़ उसको नसीब नहीं हो पाती है। हज़रत मौलाना याकूब रहमतुल्लाह अलैह एक बड़े बुजुर्ग के बारे में आता है कि उन्होंने किसी अमीर शख्स के यहां खाना खा लिया, बाद में मालूम हुआ कि वो खाना हराम कमाई से तैयार किया गया था। मौलाना फरमाते है कि हराम मुकमा (निवाला) खा लेने की वजह से मैं अपने दिल में बराबर जुल्मत (अंधेरा) महसूस करता रहा। जिसकी वजह से कई बार दिल में गुनाह करने की ख्वाहिश (इच्छा) पैदा होती रही। और नेकी पर क़ायम रहना मेरे लिए दुश्वार हो गया। अब आप और हम इस बात का ख्याल करें कि हम किस जगह किस मकाम पर खड़े हैं, हमारी कमाई का क्या हाल है। आज के फैशन परस्त दौर में हम सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाने की दौड़ में होड़ में लगे हुए हैं। ये पता ही नहीं कि हराम माल है या हलाल माल है।


            दुनिया पाने के लालच व हवस में आखिरत बर्बाद करने पर आमादा (तैयार) हैं फिर शिकायतें यह कि हमारी दुआएं कुबूल नहीं हुई, हमारी औलाद हमारा कहना नहीं मानती, हमारे घर में बरकत नहीं, हमारी परेशानियां ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही है। जैसे हमारों सवाल हमारे सामने खड़े हैं। आइये हम खुद से यह अहद (वादा) करें कि हराम से बचकर हलाल की तरफ जाएंगे और अपनी दुनिया व आखिरत को संवारने की जानिब क़दम उठाएंगे फिर यकीनन हमारे घरों में बरकत होगी, दुआएं कुबूल हो।


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