समय की फटकार ऐसी की एमए-बीएड युवाओं मागे के हाथों में थमा दिए परात और फावड़े
लॉकडाउन से हारे तो मनरेगा ने दिया सहारा, स्कूल बंद इसलिए एमए-बीएड युवा भी मनरेगा में कर रहे मजदूरी
मोहम्मद आरिफ चंदेल इस्लामपुर। देशभर में कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन ने समाज के हर वर्ग को प्रभावित किया है। लगभग तीन महीने तक रहे लॉकडाउन ने दिहाड़ी मजदूरों के साथसाथ समाज के मध्यम वर्ग को भी कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया। ऐसे में लोगों की आर्थिक स्थति खराब हो गई और अपने बच्चों का पेट पालना मुश्किल हो गया। लॉकडाउन में स्कूल बंद होने के चलते बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। इन दिनों मनरेगा में बारहवीं से लेकर एमए-बीएड युवा भी मजदूरी करते नजर आ रहे हैं।
लॉकडाउन से पहले जिन युवाओं के हाथों में कलम और डंडा हुआ करता था समय ने ऐसी करवट बदली कि आज उन्हीं युवाओं के हाथों में परात और फावड़े नजर आ रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान घर पर ही रहने से इन युवाओं का गुजारा होना मुश्किल हो गया था और इनके भविष्य पर संकट मंडराने लगा था। काम की तलाश में ये युवा दर-दर की ठोकरें खाते नजर आ रहे थे। ऐसे मुश्किल समय में लॉकडाउन से हारे इन युवाओं को सरकार की मनरेगा योजना ने सहारा दिया। मनरेगा में मजदूरी कर आज ये आईटीआई और एमए-बीएड युवा अपना घर चला रहे हैं।
कस्बे में आईटीआई होल्डर व एमए-बीएड किए ऐसे बहुत से युवा हैं जो लॉकडाउन से पहले किसी स्कूल में पढ़ा रहे थे तो कोई सरकारी सर्विस के लिए कम्पीटिशन की तैयारी कर रहे थे। आर्थिक तंगी के चलते 45 डीग्री तापमान में भी ये ग्रेजुएट युवा मनरेगा में मजदूरी कर अपना घर खर्च चला रहे हैं। हमारे रिपोर्टर जब मौके पर जाकर इन युवाओं से मिले तो इन्होंने मनरेगा में मजदूरी करने की अपनी मजबूरी को भावुक शब्दों में व्यक्त कियाकस्बे के सुंदरलाल गोयन ने बताया कि उन्होंने 2010 में बीएड और इसके बाद एमए किया था। 2012 से ये लगातार एक निजी स्कूल में पढ़ा रहे थे। लॉकडाउन में स्कूल बंद होने से इन्हें आर्थिक तंगी सताने लगी और मजबूर होकर इन्होंने मनरेगा में मजदूरी का रास्ता चुन लिया ताकि घर चलाने में कोई परेशानी ना आए। विजयसिंह ने बताया कि इन्होंने 2010 में बीएड किया था और काफी समय से ये निजी स्कूल में अध्यापन का कार्य करवा रहे थे। लॉकडाउन में आर्थिक परेशानी के चलते इन्होंने मनरेगा को चुना। नवीन भूरिया ने बताया कि इन्होंने 2012 में बीए और इसके बाद इलेक्ट्रीशियन से आईटीआई की थी। ये काफी समय से सीकर में रहकर कम्पीटिशन की तैयारी कर रहे थे।
भूरिया ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान घर पर आ गया था। आर्थिक मंदी के दौर में आखिर कब तक घर पर बैठे रहें ऐसे में मैंने घर खर्च चलाने के लिए नरेगा में जाना शुरू कर दिया ताकि कोचिंग का खर्चा भी निकल सके। 2015 में इलेक्ट्रीकल से आईटीआई किए हुए अनिल गोयन ने बताया कि मैं कम्पीटिशन की तैयारी कर हूं। लॉकडाउन में पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए मनरेगा में मजदूरी करने लगा ताकि आर्थिक परेशानी से निजात मिल सके। इलेक्ट्रोनिक्स की दुकान चलाने वाले एमए क्ववालिफाइड फैज मोहम्मद रंगरेज ने बताया कि आर्थिक मंदी का दौर चल रहा है और दुकान पर ग्राहकी नहीं है। आर्थिक तंगी से छुटकारा पाने के लिए मजबूरी में मनरेगा में मजदूरी करने लगा ताकि बच्चों के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ हो सके। इन ग्रेजवेट युवाओं का कहना है कि इन तीन-चार महीनों में इतना कमा लेंगे की पढ़ाई का खर्च भी निकल जाएगा और घर खर्च भी जुटा लेंगे।