हज़रत मुहम्मद (सल्ल.): सबके हितैषी
इस्लाम के अंतिम पैगम्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के मानव कल्याण के महान कारनामों की इतनी लंबी सूची है, जिनका उल्लेख मात्र ही किसी एक लेख में संभव नहीं है। ऐसे बहुतेरे लोग हैं, जो इस्लामी साहित्य का ठीक से अध्ययन करना चाहते हैं। इस्लाम के पैगम्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) का जन्म सन् 570 ईसवी में अरब के पवित्र शहर मक्का में हुआ था। आपका जीवन सबके लिए था और आज भी है। आप (सल्ल.) स्त्री- पुरुष, लड़के-लड़कियों, वृद्धजनों, कमजोरी, अनाथों, असहायों, मुहताजों, मजदूरों यहां तक कि सबलों एवं अमीरों के बड़े उपकारक और हितैषी थे।शांति और सदभाव के अग्रदूत थे। आपका पूरा जीवन 'सादा जीवन, उच्चतम विचार' वाला था । जो उपदेश देते, उसे अपने जीवन में पूरी तरह बरतते भी थे। पैगम्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के विषय में गांधीजी के विचार बड़े स्वाभाविक और उल्लेखनीय हैं। वे कहते हैं- इस्लाम अपने अति विशाल युग में भी अनुदार नहीं था, बल्कि सारा संसार उसकी प्रशंसा कर रहा था। उस समय, जबाक पाश्चमा दुनिया अंधकारमय थी, पूर्व क्षितिज का एक उज्जवल सितारा चमका, जिससे विकल संसार को प्रकाश और शांति प्राप्त हई इस्लाम झठा मजहब नहीं है। हिन्दुओं को भी इसका उसी तरह अध्ययन करना चाहिए, जिस तरह मैंने किया है। फिर वे भी मेरे ही समान इससे प्रेम करने लगेंगे। मैं पैगम्बरे-इस्लाम की जीवनी पर अध्ययन कर रहा था। जब मैंने किताब का दूसरा भाग भी ख़त्म कर लिया, तो मुझे दुख हुआ कि इस महान प्रतिभाशाली जीवन का अध्ययन करने के लिए अब मेरे पास कोई किताब बाकी नहीं... अब मझे पहले से भी ज्यादा विश्वास हो गया है कि यह तलवार की शक्ति न थी. जिसने इस्लाम के लिए विश्व क्षेत्र में विजय प्राप्त की, बल्कि यह इस्लाम के पैगम्बर का अत्यंत सादा जीवन, आपकी निरुस्वार्थता, प्रतिज्ञा-पालन और निर्भयता थी। यह आपका अपने मित्रों और अनयायियों से प्रेम करना और ईश्वर पर भरोसा रखना था। यह तलवार की शक्ति नहीं थी, बल्कि वे विशेषताएं और गुण थे, जिनसे सारी बाधाएं दूर हो गईं और आप (सल्ल.) ने समस्त कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर ली। मझसे किसी ने कहा था कि दक्षिण अफ्रीका में जो यूरोपियन आबाद हैं, इस्लाम के प्रचार से कांप रहे हैं, उसी इस्लाम से जिसने मोरक्को में रोशनी फैलाई और संसार वासियों को भाई-भाई बन जाने का सखद-संवाद सनाया। नि:संदेह दक्षिण अफ्रीका के बारे में यूरोपियन इस्लाम से नहीं डरते हैं, बल्कि वास्तव में वे इस बात से डरते हैं कि अगर अफ्रीका के आदिवासियों ने इस्लाम कबूल कर लिया तो श्वेत जातियों में बराबरी का अधिकार मांगने लगेंगे। आप उनको डरने दीजिए। अगर भाई-भाई बनना पाप है तो यह पाप होने दीजिाए। अगर वे इस बात से परेशान हैं कि उनका नस्ली बड़प्पन, कायम न रह सकेगा तो उनका डरना उचित है, क्योंकि मैंने देखा है अगर एक जूलों ईसाई हो जाता है तो वह फिर भी सफेद रंग के ईसाइयों के बराबर नहीं हो सकता, किन्तु जैसे ही वह इस्लाम ग्रहण करता है, बिल्कुल उसी समय वह उसी प्याले में पानी पीता है और उसी प्लेट में खाना खाता है, जिसमें कोई और मुसलमान पानी पीता और खाना खाता है. तो वास्तविक बात यह है जिससे यूरोपियन कांप रहे हैं। ('जगत महर्षि', पृष्ठ 2) हम यहां हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की कछ ऐसी शिक्षाओं का उल्लेख करेंगे. जो आज बहत प्रासंगिक हैं। पिछले कछ वर्षों से इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ने का अनुचित प्रयास किया जाता है, जबकि यह पूरी तरह से इसका विरोधी है। जीवहत्या, बलात्कार, अश्लीलता की और उन्मखता. स्त्री-असरक्षा और ऐसे ही कितने विकारों से व्यावहारिक रूप से समाज को पवित्र किया आप (सल्ल.) ने। पवित्र करआन की उद्घोषणा है कि किसी निर्दोष की हत्या पूरी मानवता की हत्या के सदृश है (5:32)। एक हदीस में है- हज़रत अनस बिन मालिक (रज़ि) से उल्लिखित है कि आपने कहा- बड़े गुनाहों में सबसे बड़ा गुनाह ईश्वर का सहभागी ठहराना है और (अकारण) जीवहत्या. माता-पिता की अवज्ञा एवं झूठ बोलना है। एक हदीस में है- क़यामत के दिन बंदे का जिस चीज़ का हिसाब लिया जाएगा वह शिक्षाओं नमाज़ है और पहली चीज़ जिसका निर्णय लोगों के मध्य किया जाएगा, वे खन के दावे हैं। हज़रत इब्ने उमर (रजि.) से उल्लिखित है कि हज़रत महम्मद (सल्ल.) ने कहा कि ईमान वाला अपने धर्म की विस्तीर्णता में उस समय तक रहता है. जब तक वह कोई अवैध रक्तचाप नहीं करता। पवित्र करआन में है- ऐ नबी, उनसे कहो कि आओ मैं तुम्हें बताऊं कि तम्हारे रब ने तम पर क्या-क्या पाबंदिया लगाई हैं- यह कि उसके साथ किसी को साझीदार न बनाओ और माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करो एवं अपनी संतान को निर्धनता के भय से क़त्ल न करो। हम तुमको भी रोजी देते हैं और उनको भी देंगे, और अश्लील बातों के निकट भी न जाओ चाहे वे खुली हुई हों या छिपी हुई (6:151)। एक बार एक व्यक्ति आप (सल्ल.) की सेवा में किया उपस्थित हुआ और उसने पूछा, सबसे बडा गनाह कौनसा है? आप (सल्ल.) ने उत्तर दिया, यह कि तू अपने बच्चे की हत्या कर दे, इस विचार से कि वह मेरे खाने में साझीदार होगा। उसने कहा, इसके बाद कौनसा गुनाह है? नबी (सल्ल.) ने जवाब दिया, यह कि तू अपने पड़ोसी की पत्नी से व्यभिचार करे। आपकी शिक्षाओं के द्वारा अल्पसमय में ही अरब का कायाकल्प हो गया। हिंसक अरबों में सभ्य संस्कार विकसित हुए। उनमें दूसरों के प्राण-सम्मान एवं शंतिप्रियता का ऐसा गुण पैदा हो गया कि पैगम्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की भविष्यवाणी के अनुसार ऐसा ही हुआ कि महिलाएं कादसिया से सनआ तक अकेली सफ़र करती थी और कोई उनकी जान-माल, इज्जतआबरू पर हमला नहीं करता था। जबकि यही वह देश था, जहां पच्चीस वर्ष पूर्व बड़े-बड़े काफिले भी निश्चित होकर नहीं गुजर सकते थे। निश्चय ही आज के मुसलमानों की स्थिति कई दृष्टियों से विचारणीय है। एक तो वे सही इस्लामी शिक्षाओं से अनभिज्ञ हैं, उन पर अमल का भी प्रश्न है। इसकी एक बड़ी वजह इस्लामी साहित्य के अधिकांश भाग का अरबी भाषा में होना है। इसलिए यह प्रयास किया जाता रहा है कि हिन्दी और अन्य भाषाआ क साहित्य म व चाज समाहित हो, जिनसे देश में शातिसद्भाव का वातावरण न सिर्फ बने, बल्कि परवान चढ़े। -साभार