कोरोना बीमारी के चलते गरीबों की रोटी संकट में
नकद जुर्माना बना बड़ा सिरदर्द
बरकात हसीन
टोंक।
कोरोना बीमारी के माहौल के दौरान इन्सानियत के बीच देखी गई दूरियों ने आम लोगों को आज भी परेशान किया हुआ है। लॉकडाउन 'वन' और 'टू' में खासतौर से गरीब परिवारों ने जबर्दस्त दहशत बीमारी की आशंका व पुलिस की सख्ती का सामना किया। लोग आज भी हालात से परेशान है। सोशन डिस्टेंस व मास्क के आधार पर की जाने वाली कार्यवाहियां खासतौर से नकदी चालान (रसीद काटकर तुरन्त राशि के रूप में जुर्माना) से लोग भयभीत भी हैं और चिंतित भी। जरा सी लापरवाही के नाम पर नकदी चालान लोगों के लिए सिरदर्द साबित हो रहा है। भीतरी गलियों में भी जुर्माने की कार्यवाही से लोग परेशान है। बड़ी मुश्किल से सौ-डेट सौ रुपए कमाने वाले, ठेले, ऑटो, घरों के दरवाजे पर गोली-बिस्किट बच्चों की चीजें बेचने वालों के खिलाफ जुर्मानों से गरीब लोगों के लिए रोटी कमाना मुश्किल हो रहा है। जबकि ऐसे कई स्थान है जहां प्रशासन कार्यवाहियां करने से बचता है। शराब की दुकानें, छोटे-मोटे राजनैतिक कार्यक्रम, असरदार व्यापारियों की दुकानों, शहर के आसपास के इलाकों में भीड़ के रूप में बैठने वालों या निर्देशों की पालना नहीं देखे जा रहे हैं। प्रशासन का फोकस शहर का मुख्य बाजार या भीतरी व्यक्तियों पर ज्यादा दिखाई देता है। पिछले महिने गाइड लाइन की पालना नहीं करने, सर्वे के दौरान मनमुटाव व पुलिस के साथ टकराव के बाद कई लोगों को जेल भी जाना पड़ा और काफी दिन जेल में रहना भी पड़ा। प्रशासन की सख्ती का विरोध करने वालों का कहना है कि यह प्रशासन की भेदभावपूर्ण और एक तरफा कार्यवाही थी। जेल जाने वाले सभी अकिलयत वर्ग के थे। इनमें महिलाएं भी थी। इन लोगों को आज भी प्रशासन से शिकायतें हैं। अकलियत वर्ग को इस बात का अहसास आज तक सता रहे कि उनके साथ दूसरे समुदायों की बड़ी तादाद में भी दूरियां बढ़ा ली थी और सिर्फ उन्हें ही कोरोना फैलाने का जिम्मेदार जैसा मानकर देख रहे थे। उन दिनों में प्रशासन पर भी आरोप लगा था कि वह भी एक वर्ग को लेकर ही आशंकित था। सच तो यह है कि इस बीमारी के माहौल ने दर्द, शिकायतें, अहसास और दूरियां बढ़ाने का काम किया जबकि यह हमदर्दी जताने और भयमुक्त वातावरण पैदा करके, बिना भेदभाव के, सबको विश्वास में रखकर बीमारी से बचाव लड़ने के उपाय करने का था