कोरोना के डर से मरीज नहीं जा रहे हैं एसएमएस अस्पताल
जयपुर के एसएमएस अस्पताल में 22 मार्च से पहले मरीजों एवं उनके परिजनों की भीड़ से पैर रखने की जगह नहीं मिलती थी। पूरे राजस्थान एवं अन्य प्रदेशों के मरीज इलाज के लिए एसएमएस में भर्ती होते थे। सस्ते इलाज के लिए जयपुर का एसएमएस अस्पताल का पूरे देश में जाना पहचाना नाम है। कोरोना महामारी के बाद एसएमएस में सभी बीमारियों के मरीजों को छुट्टी दे दी गई थी और बाद में कोरोना के मरीजों का इलाज शुरु कर दिया गया था। कोरोना के बारे में दुनिया जानती है कि इस महामारी की वजह से ज्यादातर देशों की आर्थिक स्थिति चरमराने लगी है। कोरोना का डर लोगों में इतना था कि दूसरी बीमारी से ग्रसित लोगों ने भी इजाल नहीं करवाया या समय पर इलाज करवाने से बचते रहे। यही कारण है कि कोरोना वायरस के कारण कम मौत हुई जबकि दूसरी बीमारियों से ग्रसित लोगों की समय पर इलाज नहीं मिलने पर ज्यादा मौत हुई। लोगों में कोरोना का डर इतना है कि मरीज अपनी दूसरी बीमारियों को छिपाता है। जब बिलकुल सिर पर आ जाती है तब जाकर डॉक्टर के पास जाने की सोचता है। एसएमएस अस्पताल को करीब ढाई महीने पहले ही सामान्य एवं गंभीर मरीजों के लिए खाली करवा लिया था। लेकिन कोविड-19 की जांच पहले होने के कारण मरीजों ने एसएमएस अस्पताल से दूरी बना ली है। दूसरी तरफ एसएमएस के डॉक्टर भी कोरोना से भयभीत नजर आए और कई डॉक्टर और अन्य मेडिकल स्टाफ कोरोना पॉजिटिव भी हो गया। यही कारण है कि मरीजों की कम संख्या होते हुए भी एसएमएस अस्पताल में पहले जैसा सही इलाज नहीं हो पा रहा है। दूसरी तरफ यह भी जानकारी मिल रही है कि जिन मरीजों की मौत हो रही है, उनमें दूसरी बीमारियां थी लेकिन कोरोना वायरस के कारण उनका सही तरीके का इलाज नहीं हो पाया। कोरोना पॉजिटिव जब दूसरी बीमारी से ग्रसित होता है और इलाज की कमी से मर जाता है तो उसकी मौत कोरोना से बता दी जाती है। स्वस्थ आदमी जिसका सैम्पल लिया गया और पॉजिटिव आया उसको खांसी, जुकाम, बुखार एवं गले की खरास जैसे कुछ लक्षण दिखाई नहीं दिए और क्वारानटाइन के बाद पूरी तरह जैसे स्वस्थ थे वैसे ही वापस आए। अब यह कहा जा सकता है कि कोरोना से नुकसान आदमी को नहीं है लेकिन कोरोना के डर से दूसरी बीमारी से ग्रसित मरीज का सही इलाज मिलने में दिक्कत आ रही है। जबकि निजी अस्पतालों में इलाज डॉक्टर धड़ल्ले से कर रहे हैं और जमकर मरीजों को लूटा जा रहा है। प्राइवेट डॉक्टर न तो कोरोना की टेस्टिंग करवाते हैं और न ही इलाज में कोताही बरतते हैं। यह भी माना सकता है कि कोरोना सिर्फ सरकारी अस्पतालों, सरकारी विभागों एवं सरकारी लोगों तक ही सीमित है।