हजरत अली : शेर ए खुदा


                              मुसलमानों के चौथे खलीफा और मुसलमानों के पहले इमाम के रूप में जाने जाते हैं हजरत इनका असला नाम है अला इब अबी तालिब अला इब्न अबी तालिब का जन्म 17 मार्च 601 (13 रजब 24 हिजरा पूर्व) काबा के अन्दर हुआ था। व पैगम्बर मुहम्मद (स.) के चचाजाद भाई और दामाद थे। वे मुसलमानों के खलीफा के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने 656 से 661 तक राशिदून खालाफ़त क चौथे खलीफ़ा के रूप में शासन किया, और शिया मत के स 661 तक पहले इमाम थे। गैर मुस्लिम विद्वानों की निगाह में अली ब्रिटेन के इस मशहूर विद्वान का कहना है कि इमाम अली अ.स. सभी खुल्फ़ा के बीच बाच सबस शराफ़, नम दिल आर गरीबों का ख्याल रखने वाले थे, आपकी अमानतदारी और अदालत का गभीरता ने उन अरबवासियो जिन्होने बड़े बड़े बादशाहों के साम्राज्य को बर्बाद कर दिया था उन सबको परेशान और दुखी कर रखा था, लेकिन आपकी सच्चाई, नर्मी, इबादत, नैतिकता और दूसरे बहुत से नेक सिफ़ात ने आपको इस काबिल बनाया था कि आपकी तारीफ की जाए। फ्रांस के इस मशहूर का कहना है कि इमाम अली अ.स. न केवल खुद हालात के धारे में नहीं बहे बल्कि हालात के धारे को भी मोड़ दिया, उनके कामो मों को देख कर उनकी सोच आर उनके विचारों का अंदाजा लगाया जा सकता है, जंग के मैदान में पहलवान थे लेकिन दिल नर्मी और मोहब्बत से भरा रहता था, या, दुनिया की किसी भी चीज़ की कोई लालाच उनकी जिंदगी में नहीं दिखाई देती हकीकत में उन्होंने अपनी जान को इस्लाम पर कर्बान कर दिया. उनके परे के परे वजद को खदा के खौफ ने घेर हजरत अली इब्ने अबू तालिब उर्फ हजरत अली का शुमार विश्व इतिहास की कुछ महानतम शख्सियतों में किया जाता है। इस्लाम के लगभग डेढ़ हजार साल के इतिहास में वे ऐसे शख्स हैं जो अपनी सादगी, करुणा, प्रेम, मानवीयता और न्या न्यायप्रियता के कारण सबसे अलग खड़े दिखते हैं। शांति और अमन के इस दूत ने आस्था के आधार पर इस्लाम में कत्ल, भेदभाव और नफरत को कभी जायज नहीं माना। उनकी नजर में अत्याचार करने वाला ही नहीं उसमें सहायता करने वाला और अत्याचार से खश होने वाला भी अत्याचारी ही है।


                हज़रत अली की जिंदगी मक्का के काबा में जन्मे हज़रत अली पैगम्बर मुहम्मद के चचाजाद भाई और दामाद थे जो कालांतर में मुसलमानों के खलीफा बने। इसके अतिरिक्त उन्हें पहला मुस्लिम वैज्ञानिक भी माना जाता है जिन्होंने वैज्ञानिक जानकारियों को आम भाषा में और रोचक तरीके से आम लोगों तक पहुंचाया था। उनके प्रति लोगों में शटा इतन 'शेर-ए-खदा' और 'मश्किल शेरावना और समिकल कशा' जैसी उपाधियां दी गई। पैगम्बरे इस्लाम हजरत महम्मद ने उन्हें 'अब-तराब' की संज्ञा देते हुए उनके बारे में कहा था - 'मैं इल्म का शहर हूं, अली उसके दरवाजे हैं' और 'मैं जिसका मौला हं. अली भी उसके मौला हैं। (तिरमीजी शरीफ)। हज़रत अली ने 656 से 661 तक राशदीन खलिाफत के चौथे तक राशदीन खलिाफत के चौथे खलीफा के रूप में शासन किया । शासक के तौर पर उनकी सादगी ऐसी थी कि खलीफा बनने के बाद उन्होंने सरकारी खजाने से अपने या अपने रिश्तेदारों के लिए कभी कछ नहीं लिया। वे वही जौ की रोटी और नमक खाते थे जो खिलाफत के बहसंख्यक लोगों का नसीब था। वे सुन्नी समुदाय के आखिरी राशदीन और शिया समुदाय के पहले इमाम थे। खलीफा के तौर पर अपने छोटे-से कार्यकाल में उन्होंने शासन के जिन आदर्शों का प्रतिपादन किया, उसकी मिसाल दुनिया की किसी राजनीतिक विचारधारा में नहीं मिलती। आधनिक लोकतंत्र और मार्कसवादी शासन व्यवस्था में मार्कसवादी शासन व्यवस्था में भी नहीं। दुर्भाग्य से उन्हें अपने विचारों को अमली जामा पहनाने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला। नमाज के दौरान कट्टरपंथियों द्वारा उनकी हत्या कर दी गई। उनके बाट टानिया के किसी भी मल्क, यहां तक कि किसी इस्लामी मल्क ने भी शासन में उनके विचारों को कभी तवज्जो नहीं दी।


                        हजरत अली फरमाते थेः अगर कोई शख्स भूख मिटाने के लिए चोरी करता पाया मिटाने केली करना था जाय तो हाथ चोर के नहीं बल्कि बादशाह के काटे जाय।' 'राज्य का खजाना और सुविधाएं मेरे और मेरे परिवार के उपभोग के लिए नहीं हैं। मै बस इनका रखवाला हूं।' ए खुदा 'तलवार जुल्म करने के लिए नहीं. मजलूमों की जान की हिफ़ाज़त के लिए उठनी चाहिए!' 'अगर दुनिया फ़तेह करना चाहत हा, ता अपना जीवाण न नरम लहजा पैदा करो। इसका असर तलवार असर तलवार से ज्यादा होता हा 'तीन चीजों को हमेशा साथ रखो- सचाई, इमान और नेकी। तीन चीजों के लिए लड़ा- वतन, इज्जत आर हका 'अच्छ क साथ अच्छा रहा, लेकिन बुरे के साथ बुरा मत रहो। तुम पानी से खून साफ़ कर सकत हो, खून से खून नहीं।' 'जब मैं दस्तरख्वान पर दो रंग के खाने देखता हूं तो लरज़ जाता हूं कि आज फिर किसी का हक़ मारा गया है।' किसी को आख तुम्हारी वजह से नम न हो क्योंकि तुम्हे उसक हर इक जासू का ? चुकाना आज के दौर में हज़रत अली का की जीवन दर्शन प्रसांगिक है. उन्होंने अमन और शान्ति का उन्हान पगाम दिया आर बता दिया कि इस्लाम कत्ल और गारतोगरी के पक्ष में नही है. जानबूझ कर किसी का कत्ल करने पर इस्लाम में अदबी आज़ाब मुकर है. उन्होंने कहा कि इस्लाम तमाम मुसलमानों का मजहब है .अल्फाज़ और नारी से हट कर अदल और इसाफ का हकीका तस्वीर पेश की. उन्होंने राष्टप्रेम और समाज मे बराबरी की पैरोकारी की। वह कहा करते थे कि अपने शत्रु से भी प्रेम किया करा ता वह एक दिन तुम्हारा दोस्त बन जायेगा. उनका कहना है कि अत्याचार करने वाला ,उसमे सहायता करने वाला और अत्याचार से खुश होने वाला भी अत्याचारी ही है।


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