ना विपक्ष, ना लोकतांत्रिक बहस और संसद में पास हो गए विवादित बिल
पास हो गए विवादित संसद का मानसून सत्र समाप्त
नई दिल्ली (एजेंसी)। बुधवार को संसद के मानसून सत्र का आखिरी दिन था। एक अक्टूबर को खत्म होने वाले इस सत्र को तय वक्त से आठ दिन पहले ही खत्म कर दिया गया। 10 दिनों तक चले इस सत्र में लोकसभा में 25 विधेयक पारित किए गए और 16 नए विधेयक पेश किए गए। वहीं राज्यसभा में भी 25 विधेयक पारित हुए और छह नए विधेयक पेश हुए। कोविड-19 के बढ़ते मामलों के बीच ये सत्र कई तरह से ऐतिहासिक रहा। पहली बार सांसदों ने रात भर संसद परिसर के अंदर धरना दिया। सत्र से पहले सांसदों की कोरोना जाँच हुई, सदन ने शनिवार और रविवार को भी काम किया।
इस सत्र में जबरदस्त हंगामा भी हुआ, विरोध प्रदर्शन भी हुआ और सांसदों का निलंबन भी हुआ। सोमवार को जब राज्यसभा के सभापति बैंकैया नायडु ने आठ राज्यसभा सांसदों को निलंबित किया तो विपक्ष ने सदन का बायकॉट किया। विपक्ष की गैर-मौजूदगी के बीच मंगलवार-बुधवार को राज्यसभा में सात बिल बिना लोकतात्रिंक बहस के बिना ही पास हो गए। इनमें लेबर कोड और एफसीआरए यानी फॉरेन कंट्रीब्यूशन (रेगुलेशन) अमेंडमेंट जैसे विवादित बिल भी पास किए गए, यह बिल है- फॉरेन कंट्रीब्यूशन (रेगुलेशन) अमेंडमेंट 2020: ये बिल गैर-सरकारी संगठन यानी एनजीओ के लिए है। अब एनजीओ को रजिस्ट्रेशन के वक्त अपना आधार नंबर देना होगा ताकि विदेशी फंड पर नजर रखी जा सके। इसके साथ ही अब तक जहाँ नॉन- प्रॉफिटेबल संस्थाओं के प्रशासनिक कार्यों में 50 फीसद विदेशी फंड का इस्तेमाल हो सकता था, उसे घटा कर 20 फीसद कर दिया गया है। अब विदेशों से मिलने वाले फंड को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की नई दिल्ली ब्रांच से ही रिसीव किया जा सकेगा। ये बिल सोमवार को लोकसभा में पास किया गया और बुधवार को इसे राज्यसभा ने भी पास कर दिया। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ये बिल अब कानून बन जाएगाएनजीओ को मिलने वाले विदेशी फंडिंग पर लगाम लगाने की पहल के तौर पर इस बिल को देखा जा रहा है। सरकार मानती है कि विदेशों से मिलने वाले फंड को रेगुलेट करना चाहिए ताकि ये फंड किसी भी सूरत में देश विरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल ना हों सके। लेकिन बीते दिनों में कुछ एनजीओ और उनसे जुड़े समाजिक कार्यकर्ताओं ने जिस तरह लगातार सरकार की आलोचना की है, उसके बाद सरकार के इस कदम को उसी संदर्भ से जोड़ कर देखा जा रहा है।
हालांकि सरकार की ओर से ये साफ़ कहा गया है कि वह किसी भी तरह से एनजीओ की स्वतंत्रता में दखल नहीं देना चाहती है। आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) 2020: आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में संशोधन करते हुए आवश्यक वस्तुओं की सूची से- दलहन, खाद्य तेल, प्याज, आलू को हटा दिया गया है। यानी इनके स्टोरेज पर सरकार का नियंत्रण नहीं होगा और कोई भी कंपनी या व्यापारी इसका भंडारण कर सकेगी। अब सरकार इनके बाजार भाव में भी दखल नहीं देगी। ऐसे में व्यापारी इसे किसानों से खरीदेंगे और अपने हिसाब से इनका भंडारण कर सकेंगे। ऐसे में इसकी कीमत पर भी नियंत्रण नहीं होगा। विपक्ष का कहना है कि इस नए संशोधन के बाद किसानों को उचित कीमत मिलेगी इसमें संदेह है। इससे जुड़ा अध्यादेश सरकार इस साल जून में ला चुकी है, अब इसे कानून की शक्ल दी जा रही है। नए कानून के बाद किसी असाधारण परिस्थिति जैसे- युद्ध, आपदा में ही अब इन वस्तुओं पर सरकार नियंत्रण रखेगी। लेबर कोड बिल: मंगलवार को लोकसभा में तीन लेबर कोड बिल भी पास किए गए और बुधवार को राज्यसभा ने भी इन्हें पास कर दिया। ये तीन बिल हैं- 'उपजीविकाजन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशा संहिता 2020', 'औद्योगिक संबंध संहिता 2020' और 'सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020'। सरकार का कहना है कि इससे बिजनेस करने में सहूलियत होगी। लेकिन ट्रेड यूनियन का कहना है कि ये नया लेबर कोड देश के मजदूरों को 'ब्रितानी राज की दशा' में वापस पहुँचा देगा। कहा जा रहा है कि अब तक मजदूरों के लिए जो भी लड़ाई लड़ी गई और जो भी अधिकार उन्हें हासिल हो सके ये नया कानून एक झटके में उनके सालों के संघर्ष को छीन लेगा।
इनमें से एक बिल है - औद्योगिक संबंध संहिता 2020। इसके आने से कंपनियों के लिए कर्मचारियों को नौकरी से निकालना आसान हो जाएगाअब 300 कर्मचारियों वाली कंपनियों को कर्मचारियों को नौकरी से निकालने के लिए सरकार से अनुमति नहीं लेनी होगी। एक प्रावधान ये भी कहता है कि अब कर्मचारियों को हड़ताल पर जाने से 14 दिन पहले नोटिस देना होगा और इस नियम से लेबर यूनियन के लिए हडताल पर जाना मुश्किल हो जाएगा। इससे पहले पब्लिक युटिलिटी सर्विस करने वालों को ही हड़ताल पर जाने से पहले नोटिस देना होता था। लेकिन अब नए कानून में सभी पब्लिक और प्राइवेट लेबर्स के लिए ये नोटिस ज़रूरी हो गया है उपजीविकाजन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशा संहिता 2020 के तहत मजदूर किस परिस्थिति में काम कर रहा है और उसे कैसी सामाजिक सुरक्षा मिलनी चाहिए - इस बात का जिक्र है।
इसमें सबसे जरूरी है कि कॉन्ट्रेक्ट पर काम करने वाले कर्मचारियों को भी वही फायदे देने की बात कही गई है जो स्थायी कर्मचारियों के लिए होंगे। मसलन- दिन में 8 घंटे और सप्ताह में 6 दिन काम, ओवर टाइम काम करने की स्थिति में मिलने वाले पैसे तय सैलरी से अलग होंगे। पहली बार अप्रवासी मजदूर कौन हैं इसकी पहचान के लिए वित्तीय मापदंड तय किया गया है। अगर कोई शखूस एक राज्य से दूसरे राज्य आया है, कहीं नौकरी कर रहा है या खुद का व्यापार कर रहा है और महीने में आय 18,000 रुपये से कम है तो वह अप्रवासी मजदूर की श्रेणी में आएगा। लेकिन जानकार मानते हैं कि औद्योगिक संबंध संहिता कंपनियों को मजदरों के दोहन के लिए खला हाथ दे देगा जो उनके मजदरों के अधिकारों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है बैंकिंग रेगुलेशन (संशोधन) बिल 2020: बीते साल पंजाबमहाराष्ट सहकारी बैंक में सामने आए घोटाले को देखते हुए ये बिल लाया गया हैअब कॉपरेटिव बैंक भी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के अंतर्गत आएगा। खाताधारकों की पंजी की रक्षा और सहकारी बैंकों के ऑपरेशन को बेहतर बनाने में इस नए कानन से मदद मिलेगीकंपनी (संशोधन) बिल 2020: छोटी-बड़ी कंपनियों को राहत देने के लिए सरकार की ओर से 'कंपनी (संशोधन) विधेयक-2020' को मंजरी दी गई है। इसमें आर्थिक जुर्म की श्रेणी से कुछ अपराध बाहर किए गए हैं। इस नए बिल के दायरे में छोटी-बड़ी सभी कंपनियां आएंगी। टैक्स एवं अन्य कानन बिल 2020: महामारी के समय में जिन टैक्स छूट की बात की गई थी अब उसे कानून की शक्ल दी गई है। मसलन- कोरोना के कारण सरकार ITR फाइल करने के लिए अतिरिक्त समय दिया है, TDS-TCS को लेकर 2021 तक छूट देने की सहलियत दी गई। ये अध्यादेश सरकार पहले ला चुकी थी जिसे अब सदन से भी पास कर दिया गया है। -(साभार : बीबीसी हिन्दी सेवा)