सेवा मेँ संवेदना


डॉ. सत्यनारायण सिंह,


पूर्व आई.ए.एस.


                      महात्मा गांधी अक्सर कहा करते थे कि अंत में बैठे गरीब गणेश की सेवा करते समय उसकी संवेदनाओं को उचित आदर मिलेगा तो ही सेवा का सम्मान होगा। अगर सेवा से संवेदना गायब होती है तो उसका फुल वैसा नहीं होगा जिस भावना से हम सेवा के काम में लगते है। उन्होंने कहा था “बिना श्रम के पूँजी, भावना शून्य आनन्द, मानवता के बिना विज्ञान, चरित्र के बिना ज्ञान, सिद्धान्तहीन राजनीति, ईमानदारी के बिना व्यापार, उत्सर्ग के बिना उपासना महापाप है अहिंसा हमारे जीवन का आधार भूत नियम है।" 


               गांधी जी के सम्बन्ध में आईस्टाईन ने कहा था आने वाली पीढियां इस बात पर शायद ही विश्वास करेंगी कि हाड मांस का ऐसा कोई पुतला धरती पर रहा था जिसने बगैर हथियार उठाये अपने देश को आजाद कराया और संसार को सत्य एवं अहिंसा का पाठ पढ़ाया। महात्मा गांधी की धार्मिकता, नैतिककता, भ्रातृत्व, सह अस्तित्व व चारित्रिक उच्चता पर आधारित थी। उनका कथन था कि भारत प्रमुख धर्मो का आश्रय स्थल रहा है बहुधर्मिय देश के रुप मे उभरा है। भारत के लोग धर्म में विश्वास करते है। धर्म उनके जीवन दर्शन को प्रभावित करता है। भारतीयों की सामंजस्य की सोच व सहिष्णुता, धार्मिक मतभेद, सामाजिक असामंजस्य और तनाव को मिटा सकतीहै। सेवा महात्मा गांधी ने पहली बार दक्षिण अफ्रीका में उपनिवेश विरोधी संगठन की स्थापना की। 1894 में नाटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की। 1912 में अफ्रीका नेशनल कांग्रेस की स्थापना की, अमानवीयता के विरुद्ध संघर्ष किया। गांधी ने अहिंसात्मक संघर्ष की शैली की शक्ति, जिसे आज "सत्याग्रह" कहा जाता है, सें देश को ही नहीं, पूरे संसार को परिचित कराया, सारा विश्व आश्चर्य चकित होकर देखता रहा। सन् 1920 में गांधी जी ने “असहयोग" आन्दोलन चलाया, 1930 में "सविनय अवज्ञा" आन्दोलन और 1942 में "भारत छोडो" आन्दोलन चलाया। 1920 से 1947 तक भारत के इस अर्ध. नग्न संत ने, भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का नेतृत्व किया।


              उनके प्रयास एवं प्रेरणा,नेतृत्व व शक्ति के फलस्वरुप यह आन्दोलन स्वतंत्रता के लिए जन जन का आन्दोलन बन गया। महात्मा गांधी दार्शनिक, समाज सुधारक व राजनैतिज्ञ होने के साथ साथ एक महान शिक्षा शास्त्री भी थे। महात्मा गांधी ने कहा था ईश्वर का कोई धर्म नही होता इसलिए मेरी आस्था संसार के सभी महान धर्मो द्वारा निर्देशित मूल भूत सत्य में है। हम तभी सच्चे राष्ट्र को बना पायेगें जब हम सोने के स्थान पर सच्चाई को, धन एवं बल की अपेक्षा निर्भयता को, स्वार्थ के स्थान पर त्याग को दिखा पाएंगे। आंख के बदले आंख के न्याय से तो सारा संसार अंधा हो जाएगा। गांधी जी ने धार्मिक कट्टरपन के विरुद्ध संघर्ष किया और स्पष्ट कहा कि "राज्य को धर्म के विषय में हस्तक्षेप नही करना चाहिए। ईश्वर तो सत्य व प्रेम है, ईश्वर एक है सब अलग अलग व्याख्याएं करते हैं।" उन्होंने धर्म निरपेक्षवाद के सिद्धान्त को सामाजिक न्याय और समानता के साथ भी जोडा। गांधी के नेतृत्व के अवयव दूर दृष्टि, साहस व चरित्र, करुणा,समवती है।" भावना, दृढ संकल्प, सम्प्रेषण निपुणता, संगठन कुशलता, रणनीति कौशल, प्रबन्धन-कुषलता, उदारता, राष्ट्रीयता, मास आत्मविश्वास व विश्व के प्रति व्यापक दृष्टिकोण थे। भारतीयों का संगठन एवं पुनर्नवीनीकरण, औपनिवेशिक विघमान आधीनता से भारत की अहिंसात्मक मुक्ति, अस्पृश्यता का उन्मूलन, पंचायती राज का पुनरुत्थान, सामंतवाद का अंत,राजनीति में पारदर्शिता व नैतिकता का सूत्र पात उनके नेतृत्व की उपलब्धियां रही और उनका प्रभाव उग्रवादी राष्ट्रीयता, अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध, सिद्धान्त एवं कार्यप्रणाली, पर्यावरण व जन शक्ति आन्दोलनों पर पड़ा । गांधी ने साबित कर दिया "संकल्प शक्ति के रख धनी और अपने उद्देश्य की सच्चाई में अपरिमित श्रृद्धा रखने वाले, उत्साही बंधन लोगों का एक छोटा सा समूह भी इतिहास की धारा को बदल सकता स्वाधीनता की रात को, गांधी जी स्वतंत्रता का जश्न मनाने के स्थान पर, हिन्दुस्तान नोआखली में साम्प्रदायिक हिंसा को शांत करने में लगे थे। 30 जरवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने इस संत की हत्या कर दी। उनकी मृत्यु के पष्चात भी उनका दर्षन भारतीय राजनीति व विष्वविचारधारा पर छाया रहा है। पंचायती राज इसका महत्वपूर्ण उदाहरण है। राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान वे दलितों के उद्धारक बन कर उभरे। दलितो को जागृत करने के साथ-2 वे उच्च वर्ग को देष में व्याप्त अस्पृश्यता हेतु को छोड़ने की प्रेरणा देते रहे। गांधी जी ने सत्ता और पद से दूर रह कर सर्वोदय किन्तु एवं सम्पूर्ण क्रान्ति के दर्शन का प्रतिपादन किया, व देश को फिशर स्वाभिमान एवं स्वावलंबन का पाठा पढाया। यद्यपि देश के विभाजन और उनकी हत्या से देश का घटनाक्रम घूम गया। गांधी 20वीं शताब्दी के पहले नेता थे जिन्होंने सरलतापूर्वक उपनिवेशवाद, वर्गभेद, राजनैतिक और सामाजिक बुराईयों से संघर्ष किया। लुई फिशर के अनुसार "केवल कार्ल मास ऐसे व्यक्ति है जो गांधी के समान लोगों के मस्तिष्क पर प्रभाव डाल सके हैं। पूरे विश्व के सामने गांधी एक भविष्य के रुप में आज भी विघमान है। गांधी के लिए सत्य उतना ही वास्तविक और सर्वशक्तिमान था जितना ईश्वर। मार्टिन लूथर किंग ने स्वीकार किया था," गाँधी की अहिंसा ही सरलतापूर्वक उपनिदेशवाद व वर्ग भेद को मिटा सकती है। हमारे सामने केवल दो ही विकल्प है, अहिंसा का या अस्तित्वहीनता का। भौतिकतावादी परिवर्तन गांधीकालीन भारत को सुरक्षित नहीं रख सका। गांधी साधनों की पवित्रता में विष्वास करते थे।


               भारत माता को बंधन मुक्त कराने के साथ हिंसात्मक प्रति हिंसा से मुक्त कराना चाहते थे सत्य सेवा और सर्वोदय उनका जीवन दर्षन था। उन्होंने अपनी वसीयत में कहा था "शहरों और कस्बों से भिन्न हिन्दुस्तान के लाखों गांवों की सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आजादी हॉसिल करना उनका ध्येय है।" उन्होने कहा था" हमें साम्प्रदायिक संस्थाओं के साथ गंदी होड से बचना है, प्रेम शांति, सर्वधर्म, समभाव, मानव मूल्य, सुचिता, नैतिकता पर आधारित शासन पद्धति स्थापित करनी है।" सत्य की और उन्मुख प्रेम के प्रति दृढ प्रतिज्ञ, मानव मात्र के दुख निवारण हेतु स्वयं जल कर दूसरों को आलोकित करने वाले कभी कभी हठी किन्तु स्वयं साहसिक रुप से आष्वस्त थे। गांधी की जीवनी के लेखक लुई फिशर ने लिखा है- हमारे यहां विज्ञान के बहुत सारे व्यक्ति है किन्तु ईश्वर के बहुत कम। हमने अणु का रहस्य तो जान लिया किन्तु 'सर्मन आन द माउण्ट' को अस्वीकार कर दिया। गांधी ने अणु को अस्वीकार कर दिया, सर्मन आन द माण्ट को आत्मसात् किया। वे नीतिशास्त्र के महा मानव थे। लेखिका मेरी ई. किंग के अनुसार गांधी आठ सशक्त संघर्ष के अग्रणिता थे। जातिवाद के विरुद्ध,उपनिदेशवाद के विरुद्ध, वर्ण भेद के विरुद्ध, आर्थिक शोषण के विरुद्ध, महिलाओं के निम्नीकरण के विरुद्ध, धार्मिक और जातिवाद श्रेष्ठता के विरुद्ध। उन्होंने लिखा है गांधी लोकतत्रिक भागीदारी, के साथ सामाजिक व राजनैतिक परिवर्तनों के समर्थक थे। जब तक शत्रुता, अशांति, जातीय शोषण, आन्तरिक संघर्ष और सैन्य आधित्यका भय रहेगा लोग गांधी की ओर देखेंगे।


                   आज यह प्रश्न बडा सार्थक है "अब तक की यात्रा हमारी कितनी सफल रही।" गांधी जी के आशीर्वाद से पं. जवाहरलाल नेहरु, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने, परन्तु आर्थिक नीतियों के सम्बन्ध में उनकी सोच स्वतंत्रता के साथ समाजवादी पद्धति की रही। उन्होंने भारत में नियोजित विकास प्रारम्भ किया। देश में सार्वजनिक क्षेत्र में आधारभूत उधोग,स्थापित किए लोकतंत्र की स्थापना में ऐतिहासिक एवं महत्वपूर्ण योगदान किया। मिश्रित अर्थ नीति पर राष्ट्र निर्माण की राह की शुरुआत की। देष धर्म निरपेक्ष बना रहा। सन् 1950 में संविधान तैयार कर हमने संसदीय जनतंत्र स्थापित किया, कानून के शासन और मूल अधिकारों की घोषणा के साथ सामंती समाज रचना को ध्वस्त किया, सामाजिक न्याय की आवाज बुलन्द हुईयोजनावद्ध विकास के माध्यम से भारत अविकसित देष से विकासषील देष बनता हुआ विकसित देश बन गया है। सामुदायिक विकास से पंचायती राज तक की विकेन्द्रित राजनीतिक की छवि सामने आई। सामाजिक न्याय व आर्थिक विकास के युग का एक नया दौर प्रारम्भ हुआ।


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