डूंगरपुर में चार दिन तक चलता रहा उपद्रव चलता रहा उपद्रव



  • पुलिस की कई गाड़िया फूंकी 

  • और मकानों में की लूटपाट 

  • 1167 पदों पर एस.टी. के अभ्यर्थियों को भर्ती करने की है मांग सामान्य वर्ग के लोगों में भी पनप रहा है आक्रोश 

  • सरकार समय रहते सुलझाए मामले को सांसद किरोडी मीणा ने भी आन्दोलन का समर्थन किया


एम. खान


जयपुर।


                      प्रदेश के जनजाति क्षेत्र डूंगरपुर और आस-पास के जिलों में आन्दोलनकारियों ने चार दिन तक यातायात, सड़कें एवं अन्य सुविधाओं को जाम कर दिया। आन्दोलनकारियों ने पुलिस की कई गाड़ियों को भी आग के हवाले कर दिया, पुलिस बल के कई जवान एवं अधिकारी भी घायल हो गए। राज्य सरकार ने कुछ अधिकारी एवं अतिरिक्त सुरक्षाबल भेजकर स्थिति को काबू करवाया। डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर, प्रतापगढ़, आदि जिलों में आदिवासियों की संख्या अन्य से ज्यादा है। आदिवासी वर्ग के अभ्यर्थी मांग कर रहे हैं कि सामान्य वर्ग कोटे की खाली पड़ी 1167 शिक्षकों की रिक्तियों को एस.टी. वर्ग के अभ्यर्थियों से भरा जाए। 2018 में यह सीटें सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी नहीं मिलने के कारण खाली रह गई थी। एसटी वर्ग के पढ़े-लिखे युवाओं की ओर से अपनी मांग के लिए आन्दोलन चलाना तो ठीक है लेकिन हिंसक तरीका अपनाना, सामान्य वर्ग के लोगों की दुकानों, मकानों में लूटपाट करना सही नहीं माना जा सकता। कानून को हाथ में लेकर अपनी मांगे मनवाना भी ठीक नहीं हैवैसे पूर्व में यह भी देखने को मिला है कि गुर्जर, राजपूत एवं जाटों की जितनी भी मांगे मानी गई है, वे सब हिंसक आन्दोलन करने के बाद ही मानी गई है। यही कारण है कि एसटी वर्ग के लोग भी ऐसे ही अपनी मांगे मनवाने के लिए यह तरीका अपना रहे हैं। लेकिन यह भी साफ दिखाई दे रहा है कि सामान्य वर्ग ऐसी घटनाओं से नाराज होता जा रहा है और उनमें आक्रोश पनप रहा है - जो भविष्य के लिए ठीक नहीं है। सांसद किरोडी लाल मीणा ने भी आन्दोलन को भड़काने का काम किया। उन्होंने आन्दोलन में शामिल होने तक की बात कही थी। राज्य सरकार समय रहते इस समस्या का हल निकालती है तो सभी के लिए ठीक रहेगा अन्यथा वर्ग संघर्ष की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। कहीं न कहीं सरकारी लेवल पर या नियमों में त्रुटि है इस कारण यह समस्या उभरी है। चेतना कत्ची बस्ती का


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