सबसे चुनौतीपूर्ण स्कूल- कॉलेज खोलने का मामला


                         जयपुर। देश का भविष्य अभी तय नहीं हुआ पर वर्तमान दिनचर्या लगभग ढर्रे पर आने के रास्ते खुल गये हैं। बच्चे और युवा जिन्हें देश का भविष्य कहा जाता है, कोरोना काल में इनके स्कूल-कॉलेज जाने का सिलसिला और तौर-तरीका तय होना बाकी है। सरकार ने जिन्दगी के नये-तौर तरीकों की गाइड लाइन तो तय कर दी है पर सबसे अहम स्कूली शिक्षा के मानक तय करना बाकी है, जो सबसे बड़ी चुनौती है। देश के मंहगे और संसाधन प्रधान स्कूल तो कठिन से कठिन गाइड लाइन का पालन करने में सक्षम हो सकते हैं लेकिन गरीब बच्चों के स्कूलों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन होना बेहद कठिन चुनौती है। ग्रामीण प्रधान भारत के करोड़ों गरीब बच्चों की शिक्षा सरकारी स्कूलों पर निर्भर है। ये वही सरकारी स्कूल हैं जहां टाट-पट्टी के संसाधन जुटाना भी कठिन हैं। जहां गरीब बच्चों के भोजन की मिड डे मिल योजना का क्रियान्वयन खामियों की दलीलें देता रहा है। जहां मिड डे मिल भोजन में कभी छिपकली, कभी चूहा तो कभी फफूंदी निकलने की खबरें आती रहती हैं। गरीब स्कूली बच्चों को नमक रोटी देने की खबरें भी सबको याद होंगी।


                          यहां कोरोना वायरस से बचाव की एहतियात, सेनेटाइज करना, सोशल डिस्टेंसिंग जैसे पालन बेहद चुनौती भरे होंगेशहरों के लोवर मिडिल क्लास के ज्यादातर बच्चे जो गली-कूचों के सस्ते प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं, एक-एक रिक्शे पर कई-कई बच्चे ढो-ढो के जाते हैं। अस्सी सीटों वाले क्लास में सौ-सौ बच्चे बैठते हैं। ऐसे स्कूल फीस कम लेते हैं इसलिए इनके पास कम संसाधन है। गरीब या लोवर मिडिल क्लास के अभिवावकों को ऐसे कम फीस वाले स्कूलों में बच्चों को पढ़वाना मजबूरी है और पूरा अनुशासन या समुचित संसाधन ना उपलब्ध करवा पाना स्कूलों की आर्थिक मजबरी है। ऐसे में अंदाजा लगाइयेगा कि शैक्षणिक संस्थाओं के मानकों की गाइड लाइन तैयार कर पाने और उसका पालन करवाने में सरकार के लिए कितना कठिन होगा। इस बात पर भी गौर कीजिए कि गरीब परिवारों के वो करोड़ों ग्रामीण बच्चे जो टाट-पट्टी वाले सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं उन्होंने पिछले दो महीने घरों में बैठ कर किस तरह ऑनलाइन पढ़ाई की होगी?


                           अगर घुमा फिरा कर नहीं, सीधीसीधी बात करें तो सबकुछ खुल गया है। लॉकडाउन को कुछ शर्तों और एहतियातों की हिदायतों के साथ पूरी तरह अनलॉक कर दिया गया है। रही बात सिनेमाघरों की तो वैसे भी ज्यादातर लोगों ने घरों पर सिनेमा देखने की आदत डाल ली है। राजनीतिक दलों की प्रेस कॉन्फ्रेंस से लेकर बयानबाजी और आन्दोलन तक ऑनलाइन हो रहे हैं। सांस्कृतिक, साहित्यिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और मनोरंजन के कार्यक्रम भी ऑनलाइन ही हो रहे हैं। आयोजन का खर्च भी बच रहा है। कोई भी किसी को ऑनलाइन सम्मान पत्र भेजकर सम्मान दे सकता है। इसमें एहतियातों के साथ लगभग सब कुछ खोलने की अनुमति मिल गयी है। सिनेमा और आयोजनों पर अभी भी रोक है। अब बस स्कूल कॉलेजों के खुलने और उसकी गाइड लाइन तैयार होने का इंतजार है।


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