अज़रबैजान-आर्मीनिया युद्ध हुआ समाप्त


  •  रूस ने करवाया युद्ध विराम 

  • नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र को लेकर हुआ था युद्ध शुरु 

  • आर्मीनिया की जनता सड़कों पर उतरकर युद्ध विराम का विरोध कर रही है 

  • अज़रबैजान में जीत का जश्न


      जयपुर। सितम्बर 2020 के अंत में अज़रबैजान और आर्मीनिया में भयंकर युद्ध भड़क उठा था करीब 37 दिन चले दोनों देशों के इस युद्ध में हजारों सैनिक एवं आम लोग हताहत हुए और आर्थिक बर्बादी हुई वह अलग। 37 दिन चले युद्ध में अज़रबैजान ने आर्मीनिया को भारी नुकसान पहुंचाया। अज़रबैजान ने आर्मीनिया के कब्जे वाले नागो!काराबाख क्षेत्र के ज्यादातर भागों पर कब्जा कर लिया और अज़रबैजान की सेना अर्मीनिया की ओर बढ़ती जा रही थी। आर्मीनिया की सेना एवं आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिन्यान की हताशा बढ़ती ही जा रही थी। आर्मीनिया की सहायता के लिए फ्रांस, रूस सहित अन्य ईसाई देश नहीं आए। महीनों चले इस युद्ध में अज़रबैजान आर्मीनिया पर हर क्षेत्र में भारी पड़ता गया। यदि रूस युद्ध विराम का समझौता नहीं करवाता तो आर्मीनिया नागो!-काराबाख क्षेत्र ही नहीं आर्मीनिया के क्षेत्रों को बचाना भी मुश्किल हो जाता।



     युद्द क्यों हुआ:


     अज़रबैजान और आर्मीनिया दोनों ही पूर्व सोवियत रूस के भाग रहे हैं। 1994 में सोवियत रूस के विघटन के बाद दोनों देश अलग हो गए। संयक्त राष्ट चार्टर के अनसार नागोर्नो- कारबाख क्षेत्र अज़रबैजान की सीमा क्षेत्र में आया लेकिन आर्मीनिया ने 1994 में ताकत के आधार पर अज़रबैजान से नागो! काराबाख को छीन लिया और अपना कब्जा कर लिया। जब से ही दोनों देशों के बीच तनाव चल रहा था। 29 सितम्बर गया लेकिन इस बार दोनों देशों की स्थिति बदल गई। जब 1994 में आर्मीनिया अज़रबैजान पर भारी पड़ा था और विजेता की भूमिका में था। इस बार अज़रबैजान ने आर्मीनिया की अकड़ को ढीला करते हुए नागो!-काराबाख क्षेत्र एवं उसके शहरों पर ही कब्जा ही नहीं किया बल्कि यह भी दिखा दिया कि यदि आर्मीनिया राजी से नहीं माना तो पूरे आर्मीनिया देश को अज़रबैजान में मिला लिया जाएगा। आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पार्शिन्यान को युद्ध विराम का समझौता बड़ी हार एवं बर्बादी से बचने के लिए करना पड़ा। फिर भी आर्मीनिया के कुछ लोग युद्ध विराम का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि आखिरकार युद्ध में आर्मीनिया की ही जीत होती जबकि प्रधानमंत्री निकोल पार्शिन्यान का कहना है कि युद्ध विराम पर समझौता करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था क्योंकि सेना ने आगे युद्ध लड़ने से मना कर दिया और अज़रबैजान देश के अन्य भागों पर भी कब्जा करने की स्थिति में है।


     रूस ने करवाया युद्ध विरामः


     वैसे तो आर्मीनिया और रूस में आर्मीनिया की सुरक्षा को लेकर सैन्य समझौता है। लेकिन सुरक्षा को लेकर सैन्य समझौता है। लेकिन रूस ने आर्मीनिया की 37 दिन तक चले युद्ध में खुलकर सहायता नहीं की। आर्मीनिया और अज़रबैजान दोनों ही देश रूस से सैन्य साजों सामान खरीदते हैं। रूस जानता है कि अज़रबैजान ने जिन क्षेत्रों को कब्जे को लेकर युद्ध छेड़ा है, वह देश अज़रबैजान के ही है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार भी अज़रबैजान अपने क्षेत्रों के भागों को ही आर्मीनिया से मांग रहा है। जैसे ही अज़रबैजान ने नागो!- काराबाख क्षेत्रों पर कब्जा किया और आर्मीनिया की स्थिति कमजोर दिखाई देने एवं आर्मीनिया प्रधानमंत्री की ओर से सहायता मांगने पर रूस ने दोनों देशों में शांति समझौता करवाकर युद्ध विराम कराया। रूस ने युद्ध क्षेत्र में शांति बनाए रखने एवं युद्ध फिर से शुरु नहीं हो, के लिए अपने हजारों सैनिक दोनों देशों की सीमा पर भेज दिए। समझौते के अनसार आर्मीनिया को नागोर्नो-काराबाख क्षेत्र के बाकी हिस्सों को भी खाली करना पड़ेगा। नागोर्नो-काराबाख के ज्यादातर भागों पर अज़रबैजान पहले ही कब्जा कर चुका है। इस युद्ध विराम को लेकर अज़रबैजान की राज रहा है।


     अज़रबैजान-आर्मीनिया की धार्मिक स्थिति क्या है:


     अज़रबैजान और आर्मीनिया दोनों ही देश पूर्व सोवियत संघ के भाग रहे हैं। 1994 में सोवियत संघ का विघटन हो गया। धर्म के आधार पर अन्य ते देशों की तरह अज़रबैजान और आर्मीनिया दोनों स्वतंत्र हो गए। अज़रबैजान में मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में है और राष्ट्रीय धर्म इस्लाम है। इसी तरह आर्मीनिया में ईसाई आबादी की बहुलता है और यहां राष्ट्रीय धर्म ईसाई है। दोनों देशों में जब सितम्बर के अन्तिम सप्ताह में युद्ध शुरु हुआ था तब यह भी माना जाने लगा था कि यह विश्व युद्ध की शुरुआत भी हो सकती है। क्योंकि विश्व में मुस्लिम एवं ईसाई देशों की संख्या बड़ी तादाद में है। लेकिन बाद में युद्ध दोनों देशों तक ही सीमित रहा और न ही तो धार्मिक युद्ध हुआ न ही विश्व युद्ध हुआ। लेकिन 37 दिन चले इस युद्ध में जान-माल का बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ। इराकअमेरिका युद्ध के बाद इतना बड़ा युद्ध और इतनी बड़ी जान-माल की बर्बादी पहली बार देखने को मिली। 


Popular posts from this blog

इस्लामिक तारीख़ के नायक : पहले खलीफा हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु

दुआ के कबूल होने का वक्त और जगह

तिजारत में बरकत है