बीवियों के हक़ और अधिकार

हकीम अपने वालिद मुआविया (रजि.) से रिवायत करते हैं कि उन्होंने (यानी मुआविया रजि.) कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! शौहर पर बीवी का क्या हक़ है? आप (सल्ल.) ने फ़रमाया : जब तू खाए तो उसे भी खिलाए। जब तू पहने तो उसे भी पहनाए। उसके मुंह पर न मारे और उसे बद्दुआ न दे (जैसे : ख़ुदा तेरा चेहरा बिगाड़ दे, आदि) और यदि वह जायज़ और मुनासिब बात न माने और जिस्मानी ताल्लुक़ तोड़ लेना बहुत ज़रूरी हो जाए तो घर के भीतर रहकर ही ताल्लुक तोड़े यानी घर में अपना बिस्तर अलग कर ले। (हदीस : अबू दाऊद) व्याख्या : मुंह पर तो पशुओं को भी मारना जायज़ नहीं, फिर जीवन-साथी के चेहरे पर मारना कैसे जायज़ हो सकता है? फिर भी जब समझाने-बुझाने और नसीहत से बीवी न सुधरे तो शौहर हल्की-फुल्की सज़ा दे सकता है, लेकिन नबी । (सल्ल.) की हिदायत है कि ऐसी मार न मारे । कि जिससे ज़ख्म हो जाए या हड्डी टूट । जाए। बदज़बान बीवी के साथ सुलूक लक़ीत इब्ने सब्रा कहते हैं कि मैंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! मेरी बीवी बदज़बान है, (बताइए, मैं क्या करूँ?) आप (सल्ल.) । ने फ़रमाया : उसे तलाक़ दे दो। मैंने कहा : उससे मेरे बच्चे हैं, लम्बे समय से हम दोनों का साथ रहा है। (तलाक़ देने को जी नहीं चाहता, कि बच्चों का क्या बनेगा?) आप । (सल्ल.) ने फ़रमाया : फिर तो समझाने- बुझाने और नसीहत से काम लो। यदि उसमें भलाई क़बूल करने की सलाहियत होगी तो । तुम्हारी नसीहतों से ज़रूर सुधर जाएगी। हाँ, इस बात का ध्यान रखना कि अपनी जीवन-संगिनी को इस तरह न पीटना जिस तरह तुम लौंडियों को मारते हो। (हदीस : अबू दाऊद) व्याख्या : हदीस के आखिरी हिस्से का यह मतलब नहीं है कि बीवी पर हाथ न उठाओ और लौंडियों को खूब पीटो बल्कि इसका मतलब यह है कि लोग जिस अंदाज़ से अपनी लौंडियों से बर्ताव करते हैं उस तरह का बर्ताव अपनी ज़िन्दगी भर की साथी के साथ न होना चाहिए। बीवियों के बीच इंसाफ़ करने का हुक्म अबू हुरैरा (रजि.) से रिवायत है कि नबी (सल्ल.) ने फ़रमाया : जिस व्यक्ति की दो बीवियां हों और उसने उनके साथ इंसाफ़ और बराबरी का बर्ताव नहीं किया तो ऐसा व्यक्ति क़ियामत के दिन इस हाल में उठेगा कि उसके जिस्म का आधा भाग गिर गया होगा। (हदीस : तिरमिजी) व्याख्या : शौहर ने जिस बीवी के हक़  अदा नहीं किए, वह उसके जिस्म का एक हिस्सा थी। अपने जिस्म के आधे हिस्से को उसने दुनिया में काटकर फेंक दिया था। ऐसी हालत में वह किस प्रकार क़ियामत के दिन पूरे जिस्म के साथ (अल्लाह की अदालत) में आएगी? बीवी पर किया जाने वाला ख़र्च 'नेकी' है हज़रत अबू मसऊद (रजि.) कहते हैं कि नबी (सल्ल.) ने फ़रमाया : जब कोई व्यक्ति अपने बीवी-बच्चों पर और उन लोगों पर जो उसकी सपरस्ती में हैं आख़िरत में बदला पाने की नीयत से ख़र्च करता है तो यह उसके लिए 'नेकी' (यानी बदले और इनाम का काम) बनता है। (हदीस : बुख़ारी, मुस्लिम) बीवी से निबाह की कोशिश करो हज़रत अबू हुरैरा (रजि.) से रिवायत है कि नबी (सल्ल.) ने फ़रमाया : कोई मोमिन शौहर अपनी मोमिन बीवी से नफ़रत न करे। यदि उसकी एक आदत पसंद नहीं आई तो दूसरी आदत पसंद आ जाएगी। (हदीस : मुस्लिम) ___ व्याख्या : यानी यदि बीवी खूबसूरत नहीं है या आपके मेयार पर पूरी नहीं उतरती या उसमें किसी और तरह की कमी का । अहसास होता है तो उससे बेज़ार होने या उससे नफ़रत करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। उसकी अच्छाइयों को उभरने और सलाहियतों को निखरने का मौक़ा दीजिए, हो सकता है, वह आपका दिल जीत ले। किसी के रंग-रूप से ज्यादा ताक़तवर और मुफ़ीद उसकी ओर से की जाने वाली ख़िदमत और मुहब्बत होती है। अच्छी बीवी की खूबियां हज़रत अबू हुरैरा (रजि.) बयान करते हैं कि नबी (सल्ल.) से पूछा गया : अच्छी बीवी की सिफ़ात और खूबियां क्या हैं? आप (सल्ल.) ने फ़रमाया : अच्छी बीवी वह है जिसे उसका शौहर देखे तो खुश हो जाए, हुक्म दे तो माने तथा अपने बारे में और अपने माल- दौलत के बारे में कोई ऐसा रवैया न अपनाए जो शौहर को नापसंद हो। (हदीस : नसई) व्याख्या : अपने माल-दौलत से मुराद शौहर का माल है जो उसने बीवी को घर की मालिका के रूप में दिया है। नफ़्ल इबादत के लिए शौहर की इजाजत लेनी ज़रूरी है। अबू सईद खुदरी (रजि.) कहते हैं कि एक औरत नबी (सल्ल.) के पास आई और कहा : मेरे शौहर सफ़वान इब्ने मुअत्तल नमाज़ पढ़ने पर मुझे मारते हैं और रोज़े से होती हूं तो रोज़ा तुड़वा देते हैं, फज्र की नमाज़ भी वे सूरज निकल आने के बाद पढ़ते हैं। हदीस को बयान करने वाले अबू सईद (रजि.) कहते हैं कि सफ़वान हमारे साथ इसी मजलिस में मौजूद थे। नबी (सल्ल.) ने उनकी बीवी की शिकायतों के बारे में उनसे पूछा। उन्होंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! नमाज़ पढ़ने पर मारने की जो शिकायत है, उसकी हक़ीकत यह है कि वह दो-दो सूरतें (कुरआन के अध्याय) मिलाकर पढ़ती हैं, जबकि मैं उसे इससे मना कर चुका हूं। इस पर आप (सल्ल.) ने कहा : नमाज़ में एक सूरत पढ़ लेना काफ़ी है, दो सूरत मिलाकर पढ़ना क्या ज़रूरी है। सफ़वान ने कहा : रोज़ा तुड़वाने की बात यह है कि यह लगातार रोज़ा रखे चली जाती हैं, मैं जवान आदमी हूं, सब्र नहीं कर पाता। इस पर आप (सल्ल.) ने हुक्म दिया : कोई औरत अपने शौहर की इजाजत से ही नफ़्ल रोजे रख सकती है। इसके बाद सफ़वान ने कहा : दिन निकल आने के बाद फ़ज़ की नमाज़ पढ़ने का मामला यह है कि हमारा ताल्लुक़ उस खानदान से है जिसके बारे में यह बात आम है कि जब दिन न निकल आए, हमारी नींद नहीं टूटती। इस पर आप (सल्ल.) ने कहा : ऐ सफ़वान! जब नींद टूटे तब नमाज़ पढ़ लिया करो। (हदीस : अबू दाऊद) व्याख्या : शौहर को यह हक़ नहीं है कि वह अपनी बीवी को फ़र्ज़ (अनिवार्य) इबादतों से रोके। हां, बीवी के लिए ज़रूरी है कि वह शौहर की जरूरतों को ध्यान में रखे । दीनदारी के शौक़ में लम्बी-लम्बी सूरतें पढ़कर नमाज़ लम्बी न करे। रही नफ़्ल नमाज़-रोजे की बात, तो शौहर की इजाजत के बिना इसका इरादा न करे। सफ़वान बिन मुअत्तल नबी (सल्ल.) के साथियों में से हैं। उनके बारे में यह सोचा भी नहीं जा सकता कि वे फ़ज़ की नमाज़ में सुस्ती और लापरवाही बरतते रहे हों। यह भी नहीं कहा जा सकता कि उनकी बीवी ने जिस अंदाज़ में बात नबी (सल्ल.) के सामने रखी है, वह सही नहीं है। उनकी फ़ज़ की नमाज़ हमेशा क़ज़ा नहीं होती थी। यदि हमेशा छूटती रहती तो नबी (सल्ल.) उन्हें ज़रूर मलामत करते । फ़ज़ की नमाज़ समय पर अदा न होने की दो वजहें जान पड़ती हैं : पहली वजह की ओर खुद यह हदीस इशारा करती है। कुछ लोग बहुत गहरी नींद सोते हैं। चाहे क़ियामत का शोर हो, उन्हें कितना भी जगाइए , उनकी नींद टूटने का नाम नहीं लेती। दूसरी वजह यह थी कि वे रातों को खजूरों के बागों में मजदूरी पर सिंचाई का काम करते थे। वाजेह है, जो व्यक्ति रात का एक बड़ा भाग जागकर गुजारे उसके लिए फ़ज़ के वक़्त जागना आसान नहीं होता। इस हदीस से यह भी पता चलता है कि नबी (सल्ल.) के समय में औरतों में इबादत का कितना ज़्यादा शौक़ था।

Popular posts from this blog

इस्लामिक तारीख़ के नायक : पहले खलीफा हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु

दुआ के कबूल होने का वक्त और जगह

तिजारत में बरकत है