सारी दुनिया अल्लाह का कुन्बा (परिवार) है
दर्जा गैर करने इस्लाम में इत्तिफाक व इत्तिहाद (एकता) पर जोर दिया गया है और इस उम्मते मोहम्मदी को खैर उम्मत (भलाई वाली उम्मत) का लकब (उपाधि) दी गई है और तमाम दुनिया की उम्मतों पर बड़ा व बुजुर्ग बनाया गया है। अल्लाह तआला का इरशाद है"अल्लाह की रस्सी को मज़बूत पकड़ लो" चौथे पारे के दूसरे सफहे में अल्लाह ने इत्तिहाद पैदा करने का एक बड़ा अहम उसूल बयान फ़रमाया है और सिर्फ इसी उसूल पर रहते हुए ही इत्तिहाद व इत्तिफ़ाक क़ायम हो सकता है। (मतलब) "अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़ लो और आपस में तफ़रक़ा (नफ़रत- फ़र्क) मत पैदा करो फिर अल्लाह ने उस नेमत को बतलाया है कि जो सारी दुनिया की दौलत पाकर भी हासिल नहीं हो सकती थी।" (मतलब) "और अल्लाह की नेमत को याद करो जो तुम्हारे ऊपर की, जिस वक्त तुम सब एक-दूसरे के दुश्मन थे फिर उसने तुम्हारे दिलों को जोड़ दिया तो तुम सब भाई-भाई हो गए।" इत्तिफ़ाक व इत्तिहाद एक ऐसी नेमत है जिसके बारे में किसी को कोई इख्तिलाफ़ (विरोधाभास) नहीं है कि यह एक बड़ी अच्छी चीज है बल्कि हर कौम व मजहब और दीन धर्म के लोग यह तालीम देते हैं और इस तालीम (शिक्षा) पर अमल करते हैं। क्योंकि सारे मुसलमान चाहे वो किसी भी फिरके (वर्ग) से ताल्लुक रखते हों लेकिन तोहीद व ईमान की बुनियाद पर एक होने के क़ायल है उसे मानते हैं। सिर्फ अपने फ़ायदे (मफाद) की खातिर इत्तिहाद फ़ायदा पहुंचाने वाला नहीं है क्योंकि मतलब पूरा होने के बाद वो इत्तिफ़ाक व इत्तिहाद खत्म हो जाता है और नफ़रतें शुरु हो जाती है। यह ऐसा काम चुनाव के माहौल में सियासी पार्टियां चुनाव पूरे होने के बाद जिससे हाथ मिलाती है। उनका हाथ छोड़कर अलग हो जाती है यह एकता सिर्फ चुनाव होने तक ही रहती है। सच्ची मोहब्बत व इत्तिहाद सिर्फ तौहीद की बुनियाद पर ही क़ायम हो सकती है। इसको अपनाने के लिए अल्लाह के रसूल की मिसाली ज़िन्दगी और आपके सहाबियो का मिसाली किरदार हमारे लिए काफी है। प्यारे नबी के सहाबियों का खूबसूरत किरदार एक नमूना व आइडियल है, जब हुजूरे अकरम हिज़रत करके मदीना मुनव्वरा तशरीफ़ ले गए तो मुहाजिरीन व अंसार के दरमियान मोहब्बत व भाईचारा क़ायम फ़रमाया यानि अपने एक-दूसरे को भाई-भाई बना दिया, उसका असर यह हुआ कि एक मुहाजिर, एक अंसारी को और एक अंसारी एक मुहाजिर को हक़ीकी भाई की तरह समझता था और हर चीज़ में अपना शरीक समझता था। यहां तक कि जिनके पास एक से ज्यादा बीवियां थी तो उन्होंने अपने मुहाजिर भाई से कहा कि तुम चाहे पसंद कर लो मैं उस बीवी को तलाक देता हूं, तुम उससे निकाह कर लेना। यह किरदार प्यारे नबी के प्यारे सहाबा का था। आज में अपना किरदार देखने की ज़रूरत है कि सहाबा ने गैर को सगे भाई का दर्जा दिया। हम अपने सगे व हकीकी भाई को गैर का दर्जा देने से नहीं झिझक रहे बल्कि ऐसा करने पर बड़ा फ़ख़र महसूस कर रहे हैं। अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया था कि जितना जिसका ईमान मज़बूत होगा उतनी ही दिलों में मोहब्बत उसके दिल में होगी। आपने फ़रमाया कि सारी (दुनिया) मखलूक़ अल्लाह का कुन्बा है (वसुधैव कुटुम्बकम) जब किसी गैर का जनाजा निकलते हुए आप प्यारे नबी देखते तो रोते थे कि अफसोस यह शख्स बगैर ईमान के मर गया मगर हमारा हाल यह कि अपने भाई से जले जाते हैं। किसी मुसलमान भाई की तरक्की हम से देखी नहीं जाती 'कीना' हसद बुग्ज़-दुश्मनी हमारी फितरत में शामिल हो चुके हैं, इसी वजह से बरबादी के गहरे गड्ढे में मुसलमान गिरता चला जा रहा है और सारी दुनिया में ज़लील व रुसवा हो रहा है। आइए अपने आप से वादा करें कि हम इन बुराइयों को ख़त्म करने का काम करेंगे और सच्चा मुसलमान बनेंगे तो अल्लाह की मदद शामिल होगी।