हिन्दू राष्ट्र का आलाप

 



  डॉ. सत्यनारायण सिंह

     आई.ए.एस. (आर.) 

हमारे संविधान की उद्देशिका में कहा गया है कि पाकिस्तान "हम, भारत के लोग भारत को एक प्रभुत्व संपन्न उसके लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए उसके समस्त घोषित नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता और समानता द्वारा उनमें बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प करते है।" न्याय की का परिभाषा सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय के रूप में की गई। स्वतंत्रता में विचार, अभिव्यक्ति, बहुसंख्यक विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता सम्मिलित है। सियासी समानता का अर्थ है प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता। अपनाने 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा है "समाजवाद तथा पंथ निरपेक्ष" शब्द उद्देशिका में आबादी जोड़ दिये गये। कहा उच्चतम न्यायालय के अनुसार हमारा संविधान की का प्रासाद उद्देश्यिका में वर्णित बुनियादी तत्वों पर खड़ा किया है। उद्देश्यिका संविधान का अभिन्न अंग है। लोकतांत्रिक संवैधानिक शासन व्यवस्था, संघात्मक ढांचा, पंथ निरपेक्षता, (समाजवाद, सामाजिक न्याय राष्ट्र की एकता और निजी अखण्डता बुनियादी तत्व है। शामिल उच्चतम न्यायालय ने पंथ निरपेक्ष शब्द की जाएव्याख्या करते हुए कहा है कि राज्य का अपना कोई किया मजहब नहीं है। सभी व्यक्तियों और समूहों की, चाहे गायन उनकी आस्था किसी में भी हो, मजहब के मामलों में के समानता का बर्ताव का विश्वास दिलाया गया है। भारत मे पंथ निरपेक्षता उसका इतिहास और संस्कृति में जा मौजुद रही है। संख्या में भेदभाव के बिना सभी जा समुदायों के प्रति निश्चल व्यवहार सुनिश्चत किया गया अन्य है। न्यायमूर्ति गजेन्द्र गडकर के अनुसार नागरिकों का कभी पंथ या मजहब समान अधिकार प्राप्त करने में नाम अप्रासंगिक है। धार्मिक स्वतंत्रता स्थापित करने का का प्रयास किया गया जिसके अन्तर्गत बहसंख्यकों को विचारधारा कोई विशेष अधिकार एवं प्राथमिकताएं नहीं मिली और है अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों को संरक्षण प्राप्त नगर हुआ। कुछ वर्षों पूर्व हमने संविधान को बदलने का निर्दोषों प्रयास किया कि उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया परन्तु उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि संसद भी अल्पसंख्यक संविधान की मूल भावना को बदलने में सक्षम नहीं है। साथ महात्मा गांधी ने धार्मिक पक्षपात का विरोध किया। एवं पंडित नेहरू ने धर्म को राज्य से अलग रखने की महसूस अवधारणा को अपनाया। पंडित नेहरू के बाद सभी फैला मानववादियों ने धर्म निरपेक्षता को मजबूत किया। विभिन्न महात्मा गांधी ने कहा था कि "हिन्द का मतलब हिन्द सकतानहीं है। स्वराज का मतलब हिन्दुओं की हुकुमत नहीं है बल्कि सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक व्यवस्था से परन्तु है" और इसे ही राम राज कहते थे, परन्तु आज धर्म आग निरपेक्षता समाज व धर्म के आधार पर बंटी हुई है। संपत्ति पाकिस्तान ने अपने को मुस्लिम मुल्क घोषित किया के उसके उलट भारत ने हिन्दु मुल्क के बजाय धर्म निरपेक्ष अल्पसंख्यक घोषित कियाउस सभी मानववादियों ने विभिन्न धर्मो के बीच शांति इस का बिगुल बजाया। उन्होंने कहा कि हिन्दु होना मुस्लिम बुनियादी और इस्लामियत से टक्कर लेना नहीं है परन्तु जैसे-जैसे राष्ट्रीय बहुसंख्यक हिन्दुवादी विचारधारा और संगठन फैले, देश सियासी तिकडमों के जरिये सांप्रदायिक विचारधारा ही अपनाने लगे है। कही लव जिहाद की बात की जा रही भूल है तो कही घर वापसी की। कहीं कहा जा रहा है कि है परन्तु आबादी वृद्धि के लिए 5-10 बच्चे पैदा किये जाये। अब देश कहा जा रहा है कि अन्य धर्मो की लड़कियों से शादी नहीं की जाये। कहीं जनसंख्या वृद्धि को लेकर दुष्प्रचार और किया जा रहा है। अब कहा जा रहा है कि देश को संवैधानिक रूप से हिन्दु राष्ट्र घोषित किया जाए। धार्मिक (गुजरात एवं राजस्थान सरकार ने सभी सरकारी और कभी निजी स्कूलों जिनमें अल्पसंख्यकों के स्कूल भी कश्मीरी शामिल है, को आदेश दिये है कि बसंत पंचमी मनाई का जाए। देवी सरस्वती की मूर्ति लगाई जाए, उसका पूजन यह किया जाए एवं उसकी भक्ति में सभी छात्र-छात्राएं तालमेल गायन करें।) इसका आर्य समाज, इस्लाम व ईसाई धर्म सियासी के स्कलों ने विरोध किया। अलगाव सभी धर्मो को मानने वाले उग्र और असहिष्णु होते में जा रहे है। सामाजिक एवं राजनैतिक हस्तक्षेप बढ़ता बाल्मिकी जा रहा है। राजनैतिक संगठन एवं उनके साथ कार्यरत बाल्मिकी अन्य संगठन धार्मिक कार्यक्रम थोपने के प्रयास में है। जाये कभी राम मंदिर के नाम पर, कभी धारा 370 हटाने के बहुसंख्यक नाम पर कोई न कोई वक्तव्य आते रहते है। राष्ट्रीयता का नारा बड़े जोर से लगाया जाता है। जिस प्रकार की रही विचारधारा फैलाई जा रही है और निर्णय लिये जा रहे आदेशों है उससे असहिष्णुता का जहर फैल रहा है। मुज्जफर के नगर में अन्तरजातीय विवाह के मामले में आग लगाने, कि निर्दोषों का कत्ल करने, संपत्ति नष्ट करने की घटनाएं करते हुई है। हमारे राजनेता बूढ़ी विधवा जिसने 10 अल्पसंख्यक मुसलमानों को पनाह दी और हिम्मत के समन्वित साथ उनको बचा लिया, उससे भी भारतीय संस्कृति अर्जित एवं राष्ट्रीयता का सबक नहीं सीख रहे है। हमें यह सामाजिक महसूस नहीं हो रहा कि हम दूसरे धर्मो के प्रति विद्वैष जब हम फैला रहे है और समझ नहीं रहे हैं कि भारत जैसा में राष्ट्र विभिन्न धर्मो के देश में धर्म राष्ट्रीयता का आधार नहीं हो दूसरे सकताराजनैतिक राष्ट्रीयता का नारा बड़े जोर से लगाया जाता है कोठारी परन्तु क्या उपद्रव, तोड़-फोड़ करना राष्ट्रीयता है? क्या केवल आग लगाना, नफरत फैलाना, निर्दोषों का कत्ल करना, आधारभूत संपत्ति नष्ट करना राष्ट्रीयता है? क्या जबरन घर वापसी साम्प्रदायिक के कार्यक्रम आयोजित करना राष्ट्रीयता है? बहुलताओं अल्पसंख्यक समुदाय को भी यह समझना होगा कि वे है और उस संस्कृति एवं विरासत से नाता नहीं तोड़ सकते जो हो जाता इस देश की जड़ों में है। सामाजिक समरसता के आगे रवैया बुनियादी नियमों से अल्पसंख्यकवाद को अलग से खिलाफ राष्ट्रीय स्वरूप लेने की आजादी नहीं दी जा सकती। सिद्धान्त देश का विकास पूरे देश में सहिष्णुता व सद्भावना से समझे ही संभव है, धार्मिक कटुता से नहीं। कट्टरपंथी लोग यह चला भूल रहे हैं कि बहमत से सरकार तो चलाई जा सकती करने है परन्तु देश नहीं चलाया जा सकता है और इसलिए स्वतंत्रतावाददेश की व्यवस्था में धर्म निरपेक्षता के आदर्श को अलग आर्थिक नहीं किया जाना चाहिए। आजादी का रिश्ता बराबरी मालवीय और सामाजिक न्याय से है, कटुता व अलगाव से नहीं। का संचार सरकार को व्यवसायिक स्तर के हस्तक्षेप से शुद्धिकरण धार्मिक उदासीनता के पचड़े में नहीं फंसना चाहिए। विचार कभी शाहबानो मामले का उदाहरण देकर, कभी कथनी कश्मीरी पंडितों का उदाहरण देकर, कभी धर्म परिवर्तन आधारभूत का उदाहरण देकर भड़काने वाले बयान दिये जा रहे है। व तुष्टिकरण यह जानते हुए भी कि साथ रहने, काम करने और खतरे तालमेल बैठाने के सिवाय और कोई चारा नहीं है। मुल्कों सियासी तिकडमें चलाते जा रहे है। सांप्रदायिक समाप्त अलगाव व ध्रुवीकरण देश हित में नहीं है, इससे हिन्दुओं होगा। में भी समंवयवाद नहीं बढ़ेगा। उत्तर प्रदेश में अभी बाल्मिकी समाज के लोगों ने यह मांग की कि उन्हें देश को बाल्मिकी मंदिर में पूजा अर्चना करने हेतु प्रवेश दिया नहीं बंटा जाये अन्यथा वे धर्म परिवर्तन कर लेंगे। यह स्थिति करते बहुसंख्यक लोगों के लिए उपयुक्त नहीं है। भारत यदि धर्मान्धता, सांप्रदायवाद को तरजीह मिलती के आधार रही और कटता बढ़ती रही, उल्टे-सीधे बयानों व लोगों आदेशों से स्वार्थ की रोटियां सेंकते रहे तो हम विकास अधिकार के दौर में पिछड़ जाएंगे। हमें यह महसूस करना होगा के पार्टनर कि आज के हालात में जब हम वैश्वीकरण की बात खतरनाक करते है, पार्टियों को अपने हित छोड़कर देश में फैल व्यक्ति रही दुर्भावना को दूर करने की जिम्मेदारी लेनी होगी।  समन्वित विकास और सभी समुदायों का विश्वास अर्जित करना होगा। देश में शांति, समानता, आर्थिक, सामाजिक न्याय एवं जनतंत्र की स्थापना तभी होगी जब हम अपने विचार दूसरों पर नहीं थोपे। नेता के मन में राष्ट्र का स्थान प्रथम होना चाहिए, पार्टी का स्थान दूसरे नम्बर पर। राजनैतिक चिंतक व समाज वैज्ञानिक स्व. रजनी कोठारी ने स्पष्ट कहा है कि "साम्प्रदायिक राजनीति केवल धार्मिक कट्टरपन से ही पैदा नहीं होती। आधारभूत बाजारवादी तकनीकशाही राज्य भी साम्प्रदायिक रवैए को पानी देता है। यह राज्य बहुलताओं पर समरूपीकरण का पाटा चलाना चाहता है और इस काम में साम्प्रदायिकता से उसका गठजोड़ हो जाता है।" कोठारी का कहना था कि बाजारवादी रवैया नैसर्गिक रूप से गरीबों और कमजोर वर्गो के खिलाफ होता है, क्योंकि यह नजरिया "छंटाई" के सिद्धान्त पर चलते हुए ग्रोथ रेट के लिए अनुपयोगी समझे जाने वाले समुदायों को हाशिए पर धकेलता चला जाता है। ऐसी हर व्यवस्था गरीबों को विस्मृत करने पर आधारित होती है। स्वतंत्रतावाद, समानता, सामाजिक न्याय व आर्थिक राष्ट्रवाद सबसे महत्वपूर्ण है। मदनमोहन मालवीय ने हिन्दु सुधारवाद एवं पुनरूत्थान की भावना का संचार किया था, उसमें धर्म की आड में रूड़ीवाद, शुद्धिकरण शामिल नहीं था। बहुमत की निरंकुशता का विचार राष्ट्र के लिए घातक है। आज कुछ संगठनों की कथनी व करनी से सार्वभौमवाद, राष्ट्रवाद व्यवहारिक व आधारभूत दृष्टिकोण कमजोर पड़ रहा है। पोलराईजेशन व तुष्टिकरण की बातें राष्ट्र की एकता व अखण्डता को खतरे में डाल देगी। धार्मिक आधार पर गठित दूसरे मुल्कों से शिक्षा ग्रहण कर अपनी अतिवादी नीतियों को समाप्त करना होगा। धर्म को राजनीति से पृथक रखना होगा। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी अपने देश को लौटने के पूर्व कहा है "भारत धर्म के नाम पर नहीं बंटा तो विकास होगा। उन्होंने गांधी को उद्धत करते हुए कहा कि सभी धर्म एक ही पेड़ के फूल हैं भारत सफल होता रहेगा जब तक वह धार्मिक श्रृंखला के आधार पर नहीं बंटे।" भारत के संविधान में सभी लोगों को अपने धर्म का पालन और प्रचार करने का अधिकार है। हम सब धर्मो का आदर कर ही अमेरिका के पार्टनर बने रह सकते है। बहुसंख्यकों का यह कथन खतरनाक है कि 65 वर्षों बाद कठोर विचारधारा वाला व्यक्ति प्रधानमंत्री बना है। उनको एक हिन्दु बिस्मार्क मिला हैं।

Popular posts from this blog

इस्लामिक तारीख़ के नायक : पहले खलीफा हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु

दुआ के कबूल होने का वक्त और जगह

तिजारत में बरकत है