'अल्लाह हर मामले में नरमी को पसंद करता है।

 

अल्लाह तबारक व तआला ने इंसान को अशरफुल मखलूक बनाया है और उसे पूरी दुनिया के लोगों को भलाई का हुक्म देना और उन्हें बुराई से रोकना एक बड़ी ज़िम्मेदारी भी अता की है। अल्लाह का इरशादे आली है कि तजुर्मा तुम बेहतर हो उन सब उम्मतों में जो लोगों में ज़ाहिर हुईं, भलाई का हुक्म देते हो और बुराई से मना करते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो, दीन की तब्लीग (प्रचार व प्रसार) और दावत एक अहम जिम्मेदारी है। अल्लाह इरशाद फरमाता है और तुम में एक गिरोह ऐसा होना चाहिए कि भलाई की तरफ बुलाए और अच्छी बात का हुक्म करें, चूंकि इस राह में दुश्वारी (मुश्किल) है ख़तरे हैं, मसले व मुश्किलें हैं, मुसीबतें हैं, सख्तियां हैं, इसलिए अल्लाह की बातें बताने और उसकी तब्लीग करने के लिए बड़े सब्र ज़ब्त की  जरूरत होती है।' सूरह लुकमान में अल्लाह फ़रमाता है तर्जुमा-ऐ मेरे बेटे नमाज़ बरपा रख और अच्छी बात का हुक्म दे और बुरी बात से मना कर और जो मुसीबत तुझ पर पड़े उस पर सब्र कर, बेशक यह हिम्मत के काम है। इस जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए जहां बेशुमार इल्म बेहद सलाहियतें (योग्यताए) चाहिए तो दूसरी तरफ अच्छी बातें बताने और उनका हुक्म देने के लिए असरदार लहजा, नर्म अंदाज और बयान का अंदाज हसीन व खूबसूरत होना चाहिए। उसका अन्दाजें गुफ्तगू (बात करने व कहने का तरीका) बेहतरीन होना चाहिए। अल्लाह तआला का इरशाद है तर्जुमा- और मेरे बंदों से फरमाओ वो बात कहे जो सबसे अच्छी हो यानि आप मेरे बंदों से फ़रमा दें कि ऐसी बातें करो जो उम्दा और दिलपजीर (दिल को अच्छी लगने वाली) हों जो सुने वो मुतासिर (प्रभावित) हो और उन्हें कुबूल करें। कहते हैं कि यहूदियों की एक टोली हुजूरे अकरम के पास आई उन्होंने अपनी ज़बान से यह अल्फ़ाज़ कहे अस्सामु अलेकुम (आप पर मौत तारी हो) हज़रत आइशा रजि. फरमाती है कि मैं उनकी चाल समझीं जवाब दिया अलेकुमुस्साम व लानता (तुम पर मौत व लानत हो) हुजूरे पाक ने फ़रमाया कि ज़रा नरमी से ऐ आइशा! अल्लाह तआला हर मामले में नरमी को पसंद फरमाता है। हज़रत आइशा फरमाती है कि मैंने अकरम से कहा कि आप ने वो सुना जो इन्होंने कहा। हुजूरे पाक ने फ़रमाया कि हां क्यों नहीं? मैंने इसका जवाब भी दिया और तुम पर मौत हो। इसका मतलब हज़रत आईशा को नसीहत थी कि अल्लाह तआला को ज्यादती, सख्त लहजा, कड़वाहट पसंद नहीं बल्कि नरमी अहतियात ऐतेदाल (बैलेंस-संतुलन) मोहब्बत खुलूस _ पसंद है जो कि अल्लाह के नेक बंदों का तरीका रहा है। अल्लाह वालों का तरीका रहा है कि वो बुराई करने वाले को भलाई से जवाब दिया करते थे इसीलिए उन लोगों का नाम आज तक ज़िन्दा है और क़यामत तक जिन्दा रहेगा। हम लोगों में यह कड़वाहट बहुत ज्यादा बढ़ती जा रही है, कोई बात बड़े सख्त लहजे में कहने का हुनर तो आज के इंसान ने सीख लिया और वो उसी पर अमल कर रहा है जिसका नतीजा यह है कि मोहब्बत कम और नफरत ज्यादा हो गई है। हर आदमी नफरत लिए हुए है जिसकी कहीं भी जगह नहीं है मगर वो ही सबसे ज्यादा उसके पास है। चाहे दीन की बात हो या दुनिया में भलाई की वो भी सख्त लहजे में सख्त अंदाज में कही जाती है जिसका असर बेहद कम या जिसका अपना मफाद (स्वार्थ) होता है वो मान लेता है और मौक़ा मिलते ही वार कर डालता है। तो हम सब को पूरी उम्मते मुसलमां को नरम व नाजुक लहजा व अंदाज अपनाकर एक सबक देना है और मिसाल पेश करनी है कि नबी के चाहने वाले मोहब्बत का पैगाम देते हैं न कि नफरत फैलाने का काम करते हैं इसका मतलब यह कतई नहीं है कि नरम बनकर हम दुनिया के सामने झुक जाएं और कमजोर हो जाए, जिस वक्त जिस जमाने में जो माहौल हो उसके साथ शरीअत व कुराने करीम के अहकाम की पाबंदी हदीसे पाक की रोशनी में फैसले लेकर आगे बढ़ने और सामने आने वाली मुसीबत का सामना करने की ताकत व हिम्मत भी होनी चाहिए तब ही दुनिया व आखिरत की कामयाबी मुमकिन है। शाखे गुल की भी लचक है मेरी फितरत में मगर वक्त के हाथ में चलती हुई तलवार भी हूं।" यह एक शेर एक अच्छे नरम दिल मुसलमान की पहचान बन सकता है।

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