नाजायज वसीयत की सजा

 

अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने फ़रमाया : कोई व्यक्ति (मर्द या औरत) अल्लाह की फ़रमाँबरदारी में साठ साल बसर कर डालता है मगर जब मरने का समय आता है तो वसीयत करके वारिसों को उनके जायज़ हक़ से महरूम (वंचित) कर देता है, और इस प्रकार उसके लिए जहन्नम ज़रूरी हो जाती है। अबू हुरैरा (रजि.) जो इस हदीस के बयान करने वाले हैं, ने (कुरआन की) सूरा निसा की विरासत वाली आयत का आखिरी अंश पढ़ा जो हदीस के आशय की ताईद। करता है। आयत का अंश यह है : मिम्बअदे वसीयतिन् यूसा बिहार अब दैन... से ज़ालिकल फ़ौजुल अज़ीम'' तक। (हदीस : मुस्नद अहमद) । व्याख्या : नेक आदमी भी अपने सगे- सम्बंधियों से गुस्सा होकर ऐसी वसीयत कर जाता है जिसकी वजह से वारिस अपना उचित अधिकार पाने से महरूम (वंचित) रह जाते हैं जबकि अल्लाह की किताब और नबी की हिदायतों की रू से उन्हें हिस्सा मिलना । चाहिए। ऐसे मर्दो और औरतों के बारे में नबी (सल्ल.) ने कहा कि साठ साल तक इबादत और शरीअत की पाबंदी करने के बावजूद भी अंततः ये लोग नाजायज़ वसीयत करके खुद को जहन्नम का हक़दार बना लेते हैं। उपरोक्त हदीस में हज़रत अबू हुरैरा (रजि.) ने कुरआन की सूरा-4 अन-निसा का जो टुकड़ा पढ़ा उसका मतलब यह है कि खबरदार! वारिसों को नुक़सान पहुंचाने वाली कार्यवाही न करना। अल्लाह ने विरासत के बंटवारे का जो नियम और क़ानून बनाया है वह इल्म और हिकमत पर आधारित है, उसमें न तो किसी प्रकार की नाइंसाफी है और न ही किसी तरह की जज्बाती बात। उसके बाद फ़रमाया : जो लोग अल्लाह और रसूल की नाफरमानी करेंगे और अल्लाह का क़ानून तोड़ेंगे, अल्लाह उन्हें जहन्नम में डालेगा जहां वे रुसवा कर देने वाला अज़ाब भुगतेंगे। विरासत से महरूम करने का अंजाम अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने फ़रमाया : जो अपने वारिस को मीरास से महरूम करेगा क़ियामत के दिन अल्लाह उसे जन्नत की मीरास से महरूम कर देगा। (हदीस : इब्ने-माजा) हज़रत सालिम अपने बाप हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रजि.) से रिवायत करते हैं कि क़बीला 'सक़ीफ़' के एक व्यक्ति गैलान बिन सलमा ने जब इस्लाम क़बूल किया, उस समय उनके पास दस बीवियां थी। नबी (सल्ल.) ने उनको हुक्म दिया कि । इनमें से चार को चुन लो और बाक़ी को छोड़ दो-(इसके बाद हुआ यह कि) ग़लान ने हज़रत उमर (रजि.) के दौर में अपनी चारों बीवियों को तलाक़ दे दी और अपना पूरा । माल भाईयों में बांट दिया। जब इसका पता हज़रत उमर (रजि.) को चला तो उन्होंने गैलान को बुलाया और कहा : मेरा ख़याल है कि शैतान ने ऊपर जाकर तुम्हारी मौत की ख़बर सुन ली है और आकर उन्हें बता दिया है कि अब तुम बस कुछ दिन के मेहमान हो (इसलिए तुमने उन्हें विरासत से महरूम करने के लिए अपनी बीवियों को तलाक़ देकर सारी जायदाद भाईयों में बांट दी!) मैं अल्लाह की क़सम खाकर कहता हूं कि तुम्हें अपनी बीवियों से तलाक़ वापस लेनी होगी और बांटी हुई जायदाद भी वापस लेनी होगी वरना (मैं इस्लामी राज्य के मुखिया की हैसियत से) तुम्हारी बीवियों को तुम्हारा वारिस (उत्तराधिकारी) बनाऊंगा और लोगों को हुक्म दूंगा कि वे तुम्हारी क़ब्र पर पत्थर मारें जैसे अबू-रिग़ाल की क़ब्र पर मारते हैं। (हदीस : मुस्नद अहमद)  व्याख्या : पत्थर मारना जघन्य अपराधों के लिए मुकर्रर एक सज़ा है जिसके भोगी केवल ज़ालिम और अत्यंत पापी लोग ही होते हैं। 'अबू रिग़ाल' अज्ञानकाल का वह अरब बाशिंदा है जिसने अबरहा के साथ मिलकर साज़िश रची थी और पाक काबा को ढहाने के इरादे से आने वाली सेना को रास्ता बताया था। इसलिए उस लानती व्यक्ति की क़ब्र पर लोग पत्थर मारते थे। वारिस के हक़ में वसीयत  करना जायज़ नहीं अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने फ़रमाया : किसी वारिस (उत्तराधिकारारी) के हक़ में मरने वाले की वसीयत लागू न होगी (यानि उस पर अमल न होगा)। हाँ, दूसरे वारिसों की इजाज़त से ऐसा किया जा सकता है। (हदीस : मिशकात) वसीयत की आख़िरी हद हज़रत साद इब्ने वक़्क़ास (रजि.) कहते हैं कि मैं बीमार था तो अल्लाह के रसूल (सल्ल.) मेरा हाल-चाल पूछने आए। आप (सल्ल.) ने पूछा : क्या तुमने वसीयत कर दी? मैंने कहा : हाँ। आप (सल्ल.) ने पूछा : कितने की वसीयत की? मैंने कहा : पूरे माल दौलत की वसीयत कर दी है, उसे अल्लाह की राह में दे दिया है। आप (सल्ल.) ने पूछा : अपनी औलाद के लिए क्या छोड़ा? मैंने कहा : वे मालदार हैं, अच्छी हालत में हैं। आप (सल्ल.) ने कहा : अच्छा, दसवां भाग अल्लाह की राह में दे दो। साद कहते हैं : मैं बराबर अर्ज करता रहा कि हुजूर! यह तो बहुत कम है कुछ और बढ़ाइए। तब आप (सल्ल.) ने कहा : अच्छा, एक तिहाई अल्लाह की राह में दो, यह एक तिहाई भी (हदीस : तिरमिजी) व्याख्या : इस हदीस से पता चला कि मरने वाला अपने पूरे माल का एक तिहाई हिस्सा ही वक़्फ कर सकता है और किसी ज़रूरतमंद, मदरसे या मस्जिद या मोहताज को भी दे सकता है। लेकिन ज्यादा अच्छा यह है कि पहले अपने रिश्तेदारों पर नज़र डाले और देखें कि उनमें कौन लोग ऐसे हैं जिन्हें क़ानूनी तौर पर हिस्सा नहीं मिलने वाला है तथा किसकी माली हालत कैसी है। ऐसे रिश्तेदारों को देने से ज्यादा सवाब मिलेगा।

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