रसूल की बात मानना

 

रसूल हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर (रजि.) कहते हैं कि नबी (सल्ल.) मुझे बैतुलमाल (राज्य कोष) से कुछ देते तो मैं आपसे अर्ज करता कि जो मुझसे ज्यादा तंगहाल हो, उसे दे दीजिए। (एक बार) नबी (सल्ल.) ने फ़रमाया : जो कुछ दिया जा रहा है, ले लो, उसे अपने क़ब्ज़े में करो। जब तुम्हारे पास माल आए और इस प्रकार आए कि तुमने मांगा न हो, तो ऐसे माल को ले लो, अपने क़ब्जे में करो। फिर चाहे खुद खाओ या सदक़ा कर दो, और जो माल तुम्हें न मिले, उसका लालच न करो। हज़रत सालिम (रजि.) जो इब्ने उमर के बेटे हैं, कहते हैं : यही वजह थी कि अब्बा जान कभी किसी से कोई चीज़ नहीं मांगते थे, और _यदि कोई बगैर मांगे देता तो उसे ले लेते थे, वापस नहीं करते थे। (हदीस : बुख़ारी, मुस्लिम) व्याख्या : इस हदीस में जो बातें बयान की गई हैं, वे है : 1. बिना मांगे और बिना किसी लालच के यदि कोई कुछ देना चाहे तो ना-नुकुर नहीं करना चाहिए। 2. लेकिन अगर दिल में कोई ऐसी चाह हो और उसकी उम्मीद भी हो कि फ़लां व्यक्ति मुझे माल देगा, ऐसी हालत में यदि उसकी ओर से कुछ आए तो न लेना चाहिए। बच्चों को सलाम करना हज़रत अनस (रजि.) के एक शागिर्द ने उनके बारे में बताया कि हज़रत अनस (रजि.) कुछ बच्चों के पास से गुजरे तो उन्हें सलाम किया और कहा : नबी (सल्ल.) बच्चों को सलाम करते थे। (हदीस : बुख़ारी, मुस्लिम) रसूल की पैरवी का शौक़ हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर (रजि.) के बारे में बताया गया कि वे मक्के और मदीने के बीच (सफ़र के दौरान) एक पेड़ के नीचे आराम करने के लिए लेट जाते। (इस पर वे हमेशा अमल करते रहे और) कहते कि नबी (सल्ल.) इस पेड़ के नीचे दोपहर को खाने के बाद लेटकर आराम किया करते थे।

 (हदीस : अल-मुज़िरी) व्याख्या : नबी (सल्ल.) उस पेड़ के पास दोपहर के समय पहुंचे थे, तब वहां क्रैलूला (दोपहर को आराम) किया था। लेकिन हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर (रजि.) रात में, दिन में, किसी भी समय उस स्थान पर पहुंचते तो थोड़ी देर के लिए उस पेड़ के नीचे लेटे रहते, कहते, मेरे प्यारे पैग़म्बर इस जगह लेटे थे। ऐसा नहीं कि वे बात समझते न रहे हों, या रसूल की पैरवी के मायने न जानते रहे हों, बल्कि रसूल (सल्ल.) के मोहब्बत में ऐसा करते थे। मोहब्बत, जैसा कि सभी जानते हैं, अक्ल से ऊंची चीज़ है। हदीस की एक किताब 'मुस्नद अहमद' की एक हदीस का तर्जुमा है : मशहूर ताबई मुजाहिद (रह.) कहते हैं : हम लोग एक सफ़र में हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर (रजि.) के साथ थे। जब वे एक स्थान पर पहुंचते तो वहां से हटकर एक ओर को गएबाद में हमने इसका सबब पूछा तो, बोले : मैंने अल्लाह के रसूल (सल्ल.) को ऐसा करते देखा था, अतः मैंने वैसा ही किया।' इसी मुस्नद अहमद में एक और हदीस का बयान मिलता है जिसका तर्जुमा है : मशहूर इब्ने-सीरीन (रह.) कहते हैं कि मैं हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर (रजि.) के साथ अरफ़ात (मक्का का एक मक़ाम) में था। सूरज ढलने के बाद जब वे 'मस्जिद नमरा' जाने लगे तो मैं भी साथ हो लिया। चलते-चलते जब वे मस्जिद पहुंचे तो उन्होंने इमाम के साथ जुहर और असर की नमाज़ पढ़ी। फिर मुज्दलफ़ा पहुंचे। वहां एक जगह उन्होंने ऊंटनी बिठा दी। हम लोगों ने भी अपनी सवारियों को बिठा दिया। हमें ऐसा लगा जैसे वे यहां नमाज़ पढ़ने के इरादे से रुके हों, मगर उनके सेवक़ ने, जो ऊंटनी की नकेल पकड़े हुए था, बताया, वे यहां नमाज़ पढ़ने के इरादे से नहीं रुके हैं बल्कि उन्हें यह बात याद आई है कि नबी (सल्ल.) अपने हज के सफ़र के दौरान इस स्थान पर अपनी ऊंटनी बिठाकर पाख़ाना-पेशाब

(इस्तिंजा) के लिए गए थे, इसलिए हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रसूल (सल्ल.) की मुहब्बत में ऐसा करना चाहते हैं (यह अलग बात है कि उन्हें पाख़ाना-पेशाब की ज़रूरत नहीं है।) रसूल (सल्ल.) से बेपनाह मुहब्बत हज़रत उर्वा इब्ने अब्दुल्लाह (रह.) कहते हैं कि मुझसे हज़रत मुआविया (रजि.) ने अपने बाप कुर्रह (रजि.) के हवाले से बयान किया, कुर्रह (रजि.) ने कहा : नबी (सल्ल.) की खिदमत में क़बीला मुजैना की एक टोली के साथ मैं हाज़िर हुआ। हमने आप (सल्ल.) के हाथ पर बैअत (इस्लाम क़बूल करके उस पर चलने का अहद) किया। उस समय आप (सल्ल.) के कुरते के बटन खुले हुए थे। मैं अपना हाथ नबी (सल्ल.) के कुर्ते के नीचे ले गया और 'मुह-नबूवत' (आप (सल्ल.) की पीठ पर एक ख़ास उभरा हुआ निशान) को छुआ। उर्वह कहते हैं : चुनांचे मुआविया और कुर्रह (बाप-बेटे) दोनों को हमेशा मैंने इस हाल में पाया है कि उनकी आस्तीन के बटन खुले रहते थे- चाहे जाड़े के दिन हों या गर्मी के। (हदीस : इब्ने-माजा) व्याख्या : इस हदीस से पता चलता है कि सहाबा किराम (रजि.) अपने रसूल (सल्ल.) से किस हद तक मुहब्बत करते थे। वे दलील और फ़लसफ़ा नहीं जानते थे। वे केवल यह देखते थे कि उनके प्यारे रसूल (सल्ल.) क्या करते हैंवरना वे अच्छी तरह जानते थे कि आदमी के बटन कभी खुले रहते हैं, कभी बंद रहते हैं, मगर प्रेम तो प्रेम है। हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर (रजि.) का कुछ ऐसा ही हाल हाफ़िज़ मुंज़िरी ने 'सही इब्ने खुजैमा' नामी एक किताब से नक़ल किया है (जो इस प्रकार है) : ज़ैद इब्ने असलम (रह.) ने कहा : मैंने देखा कि अब्दुल्लाह इब्ने उमर (रजि.) के बटन खुले हुए थे और वे नमाज़ पढ़ रहे थे। पूछने पर बताया कि मैंने नबी (सल्ल.) को इस हाल में नमाज़ पढ़ते देखा है।

 

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